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________________ aree adore at मेवा मौर प्रतिमा प्रारम्भ से ही इतनी चमत्कारी किस्पति का अवतार हुआ हो । उनके प्रति श के समय की arefree far-att क विषय में कोई विशेष मेल नहीं मिला वरण की गोद में पला पुसा बालक स्वयं प्रबुद्ध बन गया था । वर्धमान एक नाम परिवार के सदस्य थे। उन्हें चुहल पिता सुपार्श्व, बुधा यशोदur, aur नंदिवर्धन, मामी ज्येष्ठां और प्रजा सुदर्शना का बाया और साfers for area मे युवावस्या तक प्रतिप्रति वर्धमान के चिंतन और प्रकरण में और गहराई धायी । संगार के स्वरूप को परखा । प्रारमा तथा शरीर और जीव तथा जीव के यथार्थ वेद को अपने प्रांतरिक पौर बाह्य ज्ञान के माध्यम से धनुभव किया । यही कारण था कि वे स्वयं को वैवाहिक बंधन में नहीं बांधना चाहते थे। फिर भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने परिवार के स्नेहवश वर्ततपुर के महासामंत ममवीरा जितशत्रु कि पुत्री यशोदा के साथ परिणय किया मौर कालांतर में वे एक पुत्री के जिसका विवाह संबंध जामाती के साथ हुवा। उनका विवाह हुमा इतना अवश्य है कि उनके मन में - विज्ञान कूट-कूट कर भर सांसारिक वासनाओं से विमुक्त हो 1 पिता भी हुए हो या नहीं, पर गया था और वे गये थे । महकार और ममकार का विसर्जन मुक्ति प्रक्रिया का वर्णन है एक दास को पीटता हुआ देखकर उन्हें ससारबोध हुम्रा पौर कालांतर में उन्होंने मृगशिर कृष्णा दशमी को चतुर्थ प्रहर में उत्तरा फाल्नी नक्षत्र के योग में घर छोड़कर महाfefroster किया। यह उनका स्वतंत्रता के लिए महाभियान था । इस महामियान में उनके पांच संकल्प स्मरणीय हैं 1. मैं प्रीतिकर स्थान में नहीं रहू मा 2. प्रायः ध्यान में लीन रहूँगा । 3. प्रायः मौन रहूंगा । 4, हाथ में भोजन करूंगा । 5. Teri at africन नहीं करूंगा। इन संकल्पों के साथ वर्धमान महावीर मे लगातार बारह वर्ष तेरह पक्ष तक な उमस्थ काल में कठोर तपस्या की । इस बीच उन्हें गोपालक, मूलपाणि, चटकौशिक सविन कटपूतना, खोला, तप्त बुलि, संगम, कां बलाका मादि प्राकृतिक प्राकृतिक उपसर्व सहन करना पड़े। इन दोख दुःखदायी उपसर्गों को उन्होंने जिसे २६ और होति से सहुन कि वह एक अप्रतिम बटना थी।" पैत्रिक परम्परा से से ॐ सम्प्रदाय के अनुयायी थे, पर उनका पात्मतेज उस परम्परागत नर्म से
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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