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________________ 52 आयुध और ताम्बे वगैरह के पात्र रखते हैं, स्नान करते, तेल लगाते और शृगार सजते हैं, अतर फुलेल लगाते हैं। अमुक गाव और अमुक कुल मेरा इस तरह का ममत्व करते है। स्त्रियों का प्रसंग रखते हैं। श्रावकों से कहते हैं कि मृतकार्य के समय जिनपूजा करो और उन मृतकों का धन जिनदान में देदो। धन के निमित्त श्रावको के समक्ष अंगादि सत्र वांचते हैं, शाला मे या गृहस्थियों के घर में खाजा वगैरह का पाक करात हैं। अपने ही नाचारवाले मृतक गुरूओं के दाहस्थली पर पीठ चिनवाते हैं बलि करते हैं। उनके व्याख्यान में स्त्रिया उनके गुण गाती हैं। मात्र स्त्रियों के समक्ष भी वे व्याख्यान देते हैं और साध्वियां मात्र पुरूषों के सामने भी व्याख्यान देती हैं। भिक्षा के लिये नहीं फिरते, मंडली में बैठकर भोजन भी नहीं करते। सारी रात सोते हैं, गुणवान पुरूषों की तरफ द्वेषभाव रखते हैं, क्रयविक्रया करते हैं, प्रवचन के बहाने विकथायें करते हैं। चेला बनाने के लिये द्रव्य देकर छोटे बालकों को खरीदते हैं। मुग्ध-भोले जनों को ठगते हैं, जिन प्रतिमाओ को बेचते हैं और खरीदते हैं, उच्चटन वगैरह भी करते हैं, वैद्यक करते हैं, यंत्र मंत्र करते हैं, ताबीज गडा करते है। शासन की प्रभावना के बहाने लडाई झगडे करते हैं। सविहित मनियों के पास जाते हये श्रावको को रोकते हैं, शाप देने का भय बतलाते हैं, द्रव्य देकर अयोग्य शिष्यो को भी खरीदते हैं, व्याज १ यही रीति आजकल स्पष्टतया प्रचलित है। २ उपधानादि पर जिसमे कि स्त्रिया ही अधिकतर हिस्सा लेती हैं, जहा होता हो वहा के प्रसग को इस प्रसग को साथ मिलाइये। ३ आधुनिक समय में मृतक के बाद पूजा पढ़ाना पूजा की सामग्री रखने, स्नात्र पढ़ाने और अठाई महोत्सव करने की जो धमाल चल रही है वह चैत्यवासियो की ही प्रवृत्ति का परिणाम है ४ बर्तमान में जब कही भगवती सूत्र या कल्पसूत्र पढ़ा जाता है तब श्रावको को अपनी जेब मे हाथ डालना पड़ता है, यह बात पाठक भलीभांति जानते है इस रीति में इतना सुधार हुआ है कि गुरूजी खुले तौरसे उस द्रव्य को नहीं लेते ५ जिस प्रकार विवाह मे सीठने गाये जाते हैं, वैसे ही उपाश्रय में गुरूजी ने जोइये सोनाना पूठा अमे क्याथी लावीये, इत्यादि मधुर 'ध्वनि से श्राविकायें गुरूजी का मजाक उडाती है, यह रीति निन्दनीय है और यह चैत्यवासियो। की ही प्रथा है अत अनाचरणीय है। ६ वर्तमान काल में यह रीति भी कितनी एक जगह: प्रवर्त रही है। ७ निर्दोष भिक्षा आदि आवश्यक कार्य के लिये श्रीगौतम स्वामी स्वय पधारते। थे, परन्तु आधुनिक समय के आचार्य(?) तो उस कार्य के लिये विचारे मुग्ध क्षुल्लक मुनियो को धकेलते हैं, मानो वह काम मजदूरों का न हो। जहा साधओ के ही लिय रसोडे खुलते हो बिहार में मुनियों के लिये ही गाडी व रसोइया साथ भेजा जाता हो वहा पर फिर भिक्षाकी निर्दोषता की बात ही क्या करनी? (इसी का नाम तो पंचमकाल है?) ८-९ ये रीतिया आज यतिवर्ग में विद्यमान हैं। १०-११-वर्तमान समय में इन रीतियों की विद्यमानता के लिये किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये सब जगह प्रचलित हैं।
SR No.010108
Book TitleJain Sahitya me Vikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Tilakvijay
PublisherDigambar Jain Yuvaksangh
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, Murtipuja, Agam History, & Kathanuyog
File Size6 MB
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