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________________ ऐलक चर्या क्या होनी चाहिये और क्या हो रही है ? ] [ ६५ इजाजत दी है । पाठको को जानकारी के लिए उन सव प्रमाणो को नीचे उद्धत किये देते है -- "पाणिपात्र पुटेनोपविश्यभोजी" चारित्रसार संस्कृत पृष्ठ १६ "भुजइ पाणपत्तम्मि भायणे वा सुई समुव इट्ठो " ॥ ३०३ ॥ वसुनन्दि श्रावकाचार पाणिपात्रे भाजने वा समुपविष्ट सन्नेकवार भुक्त े । तत्त्वार्थ वृत्ति भास्कर नन्दि कृत अ० ७ सू० ३६ पृ० १८१ 'स्वयं समुपविष्टोऽद्यात्पाणिपात्रेऽथ भाजने ॥ ४० ॥ अ० ७ आशाधरकृत सागारधर्मामृत 'आद्य पानेऽथवा पाणी भू क्त े य उपविश्य ॥ ६३ ॥ अ० ८ मेधावीकृत धर्मसग्रह् श्रावकाचार 'उपविश्य चरेद्भिक्षा करपात्र े ऽङ्ग सवृत ' ॥ ५६६ ॥ वामदेवकृत 'भावसंग्रह' ― -- - ― लोच पिच्छ च सधत्ते भुक्तेऽसौ चोपविश्य ॥ २७२ ॥ ब्रह्मनेमिदत्तकृत "धर्मोपदेश पीयूषवर्ष" ―― लोच पिच्छ धृत्वा मुक्तेा पविश्य पाणिपुटे । शुभचन्द्रकृत स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की टीका यही श्लोक श्रुतसागर ने पट्प्राभृत की टीका में उक्त च रूप से लिखा है । * पाणिपात्रेऽन्यपात्रे वा भजेदमुक्ति निविष्टवान् ॥ १८५ ॥ गुणभूपणकत श्रावकाचार -- ★ देखो सूत्र पाहुड की गाथा २१ को टीका ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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