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अलब्धपर्याप्तक और निगोद ]
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मिनट करीव का होता है। इस थोडे से ४ मिनिट के समय मे ६०१२ जन्म और इतने ही मरण करने से सूक्ष्म निगोदिया अलब्धपर्याप्तक जीवो के इस कदर सक्लेशता बढती है कि उसके कारण जब वे जीव आखिरी ६०१२ वां जन्म लेने को विग्रहगति मे ३ मोडा लेते है तो प्रथम मोड में ज्ञानावरण का ऐसा तीव्र उदय होता है कि उस समय उनके अतिजघन्य श्रुतज्ञान होता है । जिसका नाम पर्याप्तज्ञान है । यह ज्ञान का इतना छोटा अश है कि यदि यह भी न हो तो अ.त्मा जड वन जाए। यह कथन गोम्मटसार जीव काड गाथा ३२१ मे किया है।
निगोद के विषय मे एक और भ्रान्त धारणा फैली हुई है । कुछ जैन विद्वान, ऐसा समझे हुए है कि-'नरक की ७ वी पृथ्वी के नीचे जो एक राजू शून्यस्थान है, जहाँ कि यसनाडी भी नही है वहाँ निगोद जीवो का स्थान है ।" ऐसा
७ (१) सूरत, जबलपुर आदि मे प्रकाशित तत्वार्थ सून (पाठ्य पुस्तक)
में तीन लोक का नकशा दिया है उसमे ७ वे नरक के नीचे एक राजू मे निगोद बताया है। ऐसा ही वथन वार्तिकेयानुप्रेक्षा (रायचन्द्र शास्त्रमाला) पृष्ठ ५६, ६२ मे तथा सिद्धान्तसार सग्रह (जीवराज ग्रन्थमाला ) पृष्ठ १४४ मे हिन्दी अनुवादको ने वि या है जब कि मूल और सस्कृत टीका में ऐसा कुछ नहीं है । (२) जैन बा न गुटका ( प्रथम भाग बाबू ज्ञानचन्द जैनी, लाहौर) पृष्ठ ३२ अमनाली मे नीचे निगोद - (३) यशोधर छरित्र ( ल वानप्रेक्षा वे णन मे, हजारी लाल जी कृत भाषा ) पृष्ठ १६१- नर्क निगोद पाताल विष जहाँ क्षेत्र जुराजू सात वखानी।"