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★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
इनमे भी सुसीमाका नाम नहीहै । यह नाम तो पूर्व विदेह मे मीता के दक्षिण तट की नगरियो मे है देखो गाथा ७१३वीं । इसके अलावा जौहरीलालजी ने ५ वें सजातक तीर्थंकर की जन्म नगरी का नाम अलकापुरी लिखा है । सो भी ठीक नही है । यह नाम तो त्रिलोकसार मे किसी नगरी का हो नहीं है ।
तथा जम्बूद्वीप स्थित मेरु के अलावा शेप ४ मेरु सम्बन्धी विदेह के तीर्थंकरो की जन्म- नगरियो के नाम भी जम्बूद्वीप के विदेह के क्रमकी तरह ही होने चाहिये थे । परन्तु जौंहरीलाल जी की पूजा में वह क्रम नही है ।
इस प्रकार जौंहरीलालजी की पूजा का कथन त्रिलोकसार से भिन्न पडता है । इस विषय मे जैसा कथन त्रिलोकसार मे है वैसा ही त्रिलोकप्रज्ञप्ति, राजवार्तिक, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, हरिवंशपुराण, लोकविभाग और सिद्धांतसार ( नरेन्द्र सेन कृत) मे है । और वैसा ही लोकप्रकाश श्वेतांबर ग्रथ मे हैं । इस तरह जोहरीलालजी की पूजा का कथन आचार्यप्रणीत उक्त सभी ग्रंथो के अनुकूल नही है । यह पूजा विक्रम स० १६४६ मे बनी है और बहुत ही आधुनिक है ।
इस पूजा मे ऐसा विरुद्ध कथन क्यो किया गया ? इसका कारण ऐसा मालूम पडता है कि पूर्व पश्चिम विदेह मे सीता सीतोदा के उत्तर दक्षिण तटो पर जिस क्रम से शास्त्रो में नगरयो का स्थान निर्देश किया है उसी क्रम के साथ सीमन्धरादि तीर्थंकरों की जन्म नगरियों को पूजा मे बैठाया गया हैं, उसी से यह गड़बड़ी हुई है ।