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[ * जैन निवन्ध रत्नावलो भाग २
के यथायोग्य सम्मान सवका किया जाता है यदि आज कोई वैद्य, डाक्टर, साधु सन्यासी, मुसलमान आदि है तो उनके पास हम जायेगे या उनको घर पर बुलायेंगे तो उनका यथा योग्य सन्मान भेट पूजा करनी पडेगी। यह लौकिक व्यवहारशिष्टाचार है। ऐसा नहीं करने से व्रतो मे और सम्यक्त्व मे अवश्य हानि हो जाती है इसका कारण यह है कि- लोविक व्यवहार का भी सम्बन्ध धर्म के साथ है।"
समीक्षा
नमस्कार भी पूजा-सत्कार की तरह सभी के लिये किया जाता है इसी से लोक मे नमस्ते, ढोक (पावाढोक प्रणाम बोलते और लिखते है अतः आपने जो नमस्कार केवल पूज्य (धार्मिक) पुरुपो के लिये ही बतायाहै वह गलत है । इसी तरह सत्कार (पूजा) पूर्वक नमस्कार भी लौकिक और धार्मिक (पूज्य) दोनों का होता है जैसे-डाक्टर साहिब को बैठने को कुर्सी देते है फीस भी देते हैं और साथ मे हाथ भी जोडते हैं फिर आप लौकिक मे नमस्कार पूर्वक सत्कार का निषेध कैसे करते हैं ? जिस तरह पूजा को लौकिक और धार्मिक दोनो में ग्रहण किया है उसी तरह नमस्कार तथा सत्कार पूर्वक नमस्कार भी लौकिक और पूज्य (धार्मिक) दोनो मे होता है। इससे सिद्ध होता है कि - आपकी परिभाषायें सब अधूरी और व्यर्थ है।
रागी द्वषी देवों की पूजा करना आप लौकिक सत्कार बताते है तो फिर जैसा वैद्यादिक सत्कार मे आपने लिखा है उसी तरह इन रागी द्वषी देवों के यहां जाकर अथवा उन्हे अपने घरपर बुलाकर पूजा-सत्कार करिये किसी को कोई विशेष