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* जैन निवन्ध गनावली भाग २
अर्थ-त्रियो की योनि मे, स्तनो के बीच में, नामि में और काख मे सूटम शरीर के धारक जीव (सम्मच्छिममनुप्य) कहे गये है। अन स्त्रियो की महाव्रती दीक्षा को हो सकती है । ( नही हो सकती है । )
इस विषय में कवि द्यानतराय जी का निम्न पद्य देखिये-~
नारि जोनि पन नाभि काख में पाइये। नर नारिन के मलमूत्तर में गाइये ॥ मुरदे मे सम्मूच्छिम सनी जोयरा । अलगधपरयापत्ती दयाधरि होयरा ॥
- "धर्मविलास" लोकप्रकाश (श्वेताम्बर ग्रन्थ) के ७ वें सर्ग के श्लोक ३ से २ मे लिखा है कि
"मल, मूत्र, कफ, नासिकामल, वमन, पित्त, रक्त, राध, शुक्र,मृतकलेवर, दम्पति के मैथुनकर्म मे गिरने वाला वीर्य पुरनिर्द्ध मन (खाल-चर्म, गदी नाली ) गर्भज मनुष्य सम्वन्धी सव अपवित्र स्थान, इतनी जगह सम्मूच्छिम मनुष्यो
जैनागम शब्दसग्रह (अर्धमागधी-गुजराती कोश) मे पृष्ठ ३६८ पर इसी का पर्यायवाची "णगरनिटमण" (नगरनिधमन) को अर्थ इस प्रकार दिया है- शहर का गन्दा पानी निकालने का मार्ग, खाल। यहां दोनो अर्थ उपयोगी हैं, दोनो मे सम्मच्छिम मनुष्योत्पत्ति होती है।