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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
"अन्यमा के गाए शिक्षा विरह और जानकी निक्षा वा बाल उन गगन पर जाये।" लिए मैंने मनुस्मृति का मायगर या पनाया कि- ( अ० श्लोक ५५ आदि ) दाभा कि- "जब गोई का
बन्द होगया हो, चुके हो, झूठी पत्त
बाग,
भोजन
दो ऐसे में गदा यति को भिक्षा के लिए नानानादिक"
मृगाधुभिक्षा का यह समय बताया लोग नीके
से निमट जाय। अनुमानत. हो मता है ।
है कि जब व गमप मध्याह्न के
हमने मनुस्मृतिका प्रमाण "अन्य मत के माधु" इस टोक्त बात पर दिया था और दृष्टि से दिया था किअन्य मन क गाधुओ को भी ऐसी चर्या है तो हमारे साधुओं की तो उनमे ऊंनी ही होनी चाहिए, उनसे नीची कैसे हो मकती है । आगाधर जी ने भी अपनी टीकाओं में अनेक जगह मनुमृति के प्रमाण दिये है । अत मनुस्मृति के प्रमाण पर आपत्ति करना गलत है ।
प्रश्न -- वोशन्थों में दिनमान के भागो मे दीच का १ भाग अथवा ५ भागो मे बीच का १ भाग मध्याह्नकाल माना है । कुतप शब्द से दिनमान के १५ भागो मे बीच का १ भाग भी मध्याह्न माना है। इनमे से जैनमुनिको भिक्षा का मध्याह्न काल कौनसा लिया जाय ? उत्तर -दिन के ३ भाग करो चाहे ५ या
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