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[ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
समय लिखा है।
हरिवश पुराण सर्ग ६ मे लिखा है कि-श्री ऋषभदेव भगवान के दर्शन प्रजा को उस वक्त होते थे जब वे मध्याह्न के समय आहार के अर्थ पुरो व ग्रामो मे आते थे। यथा
मध्यान्हेषु पुरग्रामगृहपंक्तिषु दर्शनम् । प्रशस्ताषु प्रजाभ्योऽदाच्चाद्रीचर्या चरन क्षितो ॥१४॥ यहा भी मध्याह्न का समय लिखा है ।'
सकलकीर्तिकृत प्रश्नोत्तर श्रावकाचार के २४वे सर्ग मे ११वी प्रतिमा का स्वरूप वर्णन करते हुए लिखा है कि
योग्यकाले तदाटाय मुहर्ते सप्त सगते । दिने परिग्रहे योग्ये भिक्षार्थं समेत् व्रती ॥४५॥
अर्थ - उस पात्र को लेकर सात मुहर्न दिन के चढ जाने पर जो कि भिक्षा का योग्य काल है, उसमे योग्य दिन मे क्ष ल्लक व्रती को भिक्षा के लिए घूमना चाहिए।
0 पर्व ६२ श्लोक १५-१६ मे लिखा है - नभोमध्य गते भानावत्पदा ते महाशमा (वै मुनीश्वर आकाश के मध्य मे सूर्य के आने पर अर्थात् ठीक मध्यान्ह मे भिक्षार्थ नगर मे आये)
हरिवशपुगण के सर्ग ६ श्लोक १६६ से भी मध्यान्ह - ही भिक्षाकाल प्रकट होता है-तावदध्मान माध्यान्ह शखनाद समुच्छ्नि ।