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श्रावक की ११वी प्रतिमा ]
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पाहुड की गाथा १३ मे लिखा है कि जो वस्त्रधारी क्षुल्लकादि श्रावक है वे सब इच्छाकार के योग्य हैं । यहाँ आचार्य का यह आशय है कि जो वस्त्र रखते है वे नवधा भक्ति के योग्य नही है ।
प० भावदेव नही, वामदेव का बनाया हुआ सस्कृत में एक भाव संग्रह नामक ग्रन्थ है जो छप चुका है । उसमे भी ११ वी प्रतिमा का वर्णन है। वह वर्णन प्राय वमुनन्दी की तरह का ही है । उसमे जो 'पञ्चभिक्षाशन भुक्त' पाठ लिखा है वह हमे अशुद्ध मालूम पडता है । उसके स्थान में शुद्ध पाठ 'पात्रे भिक्षाशन भुक्त' होना चाहिए। जिसका अर्थ होता है प्रथम भेदका धारी भिक्षा भोजनको पात्रमे जीमता है । इन प० वामदेव का बनाया एक त्रैलोक्य दीपक ग्रन्थ भी है, जिसकी वि० ० स० १४३६ की लिपि की हुई प्रति मिलती है । इससे इनका समय वि० स० १४३६ से पूर्व का सिद्ध होता है ।
लाटी सहिता मे क्षुल्लक के लिए पांच घरो से भिक्षा लाने की लिखी है वह काष्ठासघी ग्रन्थ है । अन्य ग्रन्थो मे गृहसंख्या का उल्लेख नही है ।
प० मेधावी ने धर्मसंग्रह श्रावकाचार की प्रशस्ति में एक 'दीपद' नाम के श्रावक को आशीर्वाद देते हुए जो उसका स्वरूप लिखा है वह ११ वी प्रतिमा वाले द्वितीयोत्कृष्ट श्रावक के स्वरूप से मिलता हुआ है उसको मेधावी ने क्षुल्लक नही लिखा है किन्तु 'सत्क्ष ुल्लक' (उत्कृष्ट क्ष ल्लक) और 'आर्य' लिखा है । तथा उनके लघु पिच्छी बताई है धत्ते च पिच्छ लघु' । ( मुनि की तरह वडी पिच्छी नही ) |