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५.३० ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ पर किया पा। जमानायो नागव यहाँ भरत क्षेत्र मे मुनिनुतन भगवान मा हुआ है, वैगा ही विदेह में मीमधर स्वामी का हुआ है।"
गत्ताने जाना जाता है कि मोमधर स्वामी का मन्नित्य मुनिमुधन और नगि तीर्थकर को अगल समय मे था। जिनमेन
ग श्लो०६० मे लिखा है. कि-प्रराम पाने के बा- उसका पता लगाने को गानी में लायनो देश को पुनरीकिणी नगरी में गरे । यो नगमागम में पहुंचकर भगवान सीमधर से प्रद्युम्न जातान मागया।
पदमा बनानुगार ती भीमघर ने मुनिसुव्रत मोर नाम जनगल नमरा में दीक्षा ली यो और हरिवशपुराण र अनुनार मिनाशके समय में वे वे बल जानी हो गये थे यह ती
दिगणकारने पमचग्यि नामक प्राशन ना गम ताकात करके अनुमरण दिया है।
एनीमध न्यानो का 36 दीक्षाक्तान जैसा परमचरिय में लिया गरेका पक्षमतगण में लिया गया है। ऐसा हो रन दमचन्द्र गत जनरामायण श्वेतावर गन्ध में भी है।
हरियापुराणार जिनसेन मे समक्ष रविपेग का पद्म पुराण मोजूद था ही अत जिनरोन ने भी रविपेश के कथन की मर्गात ठाते हरे नेमिनाय के समय मे सीमधर स्वामी को मेवल ज्ञानी प्रगट किया और नारद जी ने उनसे प्रद्युम्न का নার জালা ইন্না লিজা।
उन दोनो ग्रन्थों की इन कथाओं के आधार पर बहुत से