________________
४७
श्री सीमंधर स्वामी का समय
जिन शेष के बीन में मेरु पर्वत होता है उसको विदेह क्षेत्र बनते है। इस क्षेत्र मे देवकुल उत्तरकुरु को छोड़ कर शेष कान रहता है। जहां कभी मोक्षमार्ग वद नहीं होता है | और नया ही जहां के मनुष्य की काय प्रायः पानसो धनुष को ऊँनी व आयु अधिक से अधिक एक करोड पूर्व वर्ष को होती है। पूर्व दिशा की तरफ का भाग पूर्व विदेह और पश्चिम का भाग पश्चिम विदेह कहलाता है । अढाई द्वीप से पान ने पर्वत होने के कारण पाँच विदेह क्षेत्र होते हैं । मभी विदेश मे उक्तप्रकार ने पूर्व-पश्चिम भाग होते हैं | पूर्व-पश्चिम भागो मे गोलह २ महादेश होते हैं। पांच विदेहो के दश भागो मे कुछ महादेशों की सख्या १६० होती है । कभी २ एक ही समय मे न १६० देशो मे १६० तीर्थकरों का नद्भाव रहता है। कहते हैं श्री अजीन नाथ स्वामी के समय मे पांचो विदेहो में १९० तोकर विद्यमान थे । निश्चयत प्रत्येक विदेह के पूर्व - पश्चिम भाग में कम से कम दो-दो तीर्थकर तो हमेशा विद्यमान रहते ही है । तदनुसार पांचो विदेहो मे कम से कम २० तीर्थकर नित्य पाये जाते हैं । इस वक्त भी पांचो विदेहो मे सीमधरादि २० तीर्थकर मौजूद हैं। जिस जवूद्वीप मे हम रहते हैं उसके विदेह क्षेत्र मे भी पूर्व भागमे दो और पश्चिम भाग मे दो कुल ४