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५१२ ] [ ★ जन निवन्ध रत्नावली माग २ अपना अगर नहीं देती किन्तु कुछ समय बाद बपना यसर दिगनाती है। वैसे ही गमगी वधने के बाद तुरन्त अपना फल न देकर कुछ समय तक मत्ता में रहते है। इस काल को जैन परिभाषा में अबाधा पाल करते हैं।
उदय-कमों के फल देने को उदय कहते हैं। यह उदय दो तरह का होता है। फलोदय और प्रदेशोदय । जव कम अपना फल देर आत्मा ने अलग हो जाता है तो वह फलोदय कहा जाता है और जब ममं बिना फल दिये ही अलग हो जाता है तो उसे प्रदेशोग्य करते हैं।
उदीरणा-मे मामी को पाल में देने से वे डाल की अपेक्षा जत्दी पक जाते है। उमी तरह कभी-कभी कर्मों का अपना स्थितिकाल पूरा किये बिना ही फल भृगता देना उदीरणा कहलाती है। उदीरणा के लिये पहिले अपकर्षणकरण के द्वारा नम की स्थिति को कम करना पड़ता है। जब कोई असमय में भी मर जाता है तो उसकी अकाल मृत्यु कही जाती है। इसका कारण बायु कर्ग की उदीरणा ही है। स्थिति का घात हुए विना उमीरणा नहीं होती।
सक्रमण-एक कर्म का दूसरे सजातीय कर्मस्प हो जाने को सक्रमणकरण कहते हैं । यह सक्रमण कमों के मूल भेदो मे नही होता है न जानावरण दर्शनावरण रूप होता और न दर्शनाचरण ज्ञानावरण रुप ही। किन्तु अपने ही अवातर भेदो में होता है जैसे वेदनीय कर्म के दो भेदो से साता वेदनीय असाता वेदनीय रूप हो सकता है और असाता वेदनीय साता वेदनीय रूप हो सकता है। किन्तु कर्म के लिये अपवाद है। आयु कर्म के चार भेदो मे परस्पर सक्रमण नही होता है। जिस मति की