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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
आपके स्पष्टीकरण के " जैसा कि रहा भी है" ये वाक्य तो और भी ज्यादा मिथ्या व आपत्तिजनक हैं। आप अपने मन मे चाहे जो अर्थ धारे रहे किन्तु अगर शब्द सयोजन गलत है तो उससे गलत ही अर्थ निकलेगा । शब्द-गठन ऐसा होना चाहिए कि - जिससे कोई दूसरा, विपरीत, भिन्न, व्यर्थ, आपत्तिजनक एव भ्रात अर्थ नही निकल सके तभी वह कथन या लेखन निर्दोष हो सकता है अन्यथा नही ।
तिलोयपण्णत्ती के अनुवाद मे किस प्रकार से गलतियाँ की गई है इसका एक नमूना और प्रस्तुत करते है
सिरिदेवी सुददेवी सव्वाण सणक्कुमारजक्खाणं । रुवाणि मणहराणि रेहति जिणिव पासेसु ॥४८॥ [ अधि० ७ ]
अनुवाद -- जिनेन्द्र प्रासादो मे श्रीदेवी श्रुतदेवी और सब सनत्कुमार यक्षो की मनोहर मूर्तिया शोभायमान होती है ।
समीक्षा - इस अनुवाद मे - " जिनेन्द्र प्रासादो मे" के स्थान मे 'जिनेन्द्र के दोनो पार्श्वभागो मे तथा " ओर सव" की जगह " सर्वाण्ह और " ये वाक्य होने चाहिये प्रमाण के लिये देखो
(१) सिरिदेवी सुददेवी सव्वाण्ह
सणवकुमार जक्खाणं ।
रुवाणि य जिण पासे मगल
मटठ विह मवि होदि ॥ तिलोसार [नेमिचद्राचार्य ]