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मूलाचार का संस्कृत पद्यानुवाद ]
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रात्रौ च तत्यजेत्स्थाने प्रज्ञाश्रमणवीक्षिते । कुर्वन् शकानिरासायापहस्त स्पर्शन मुनि ।।
[अनगारधर्मा० पृ० ३१८] उग्गम उप्पादण रासण च सजोजण पमाण च । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडसुद्धी दु ॥२॥
[मूलाचार अधिकार ६] उद्गमोत्पादनाहार सयोग' सप्रमाणक । अगारघूमौ हेतुश्च पिंडशुद्धिमताष्टधा ।।
[अनगारधर्मा० पृ० ३३५] अप्पासुयेणमिस्स पायदव्व तु पूदिकम्म त । चुल्ली उक्खलि दव्वी भायणगत्ति पचविह ॥६॥
[मूलाचार अधि०६] मिश्रमप्रासुनाप्रासुद्रव्य पूतिकमिष्यते । चुल्लिको दुखलं दर्वी पात्र गधौ च पचधा ॥
अनगारधर्मा० पृ० ३३६] इत्यादि बहुत से समानार्थक पद्य हैं उन सबका ही यदि यहा उल्लेख किया जावे तो लेख बहुत विस्तृत हो जावेगा अत. नीचे हम उनकी केवल तालिका ही देते हैं
मूलाचार अनगारधर्मामृत अधिकार गाथा
पृष्ठ ११-१२
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