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[* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
लोग इन दपतियो के गठजोडो मे कुछ नकदी रुपये रखा कर उन सबको ले लेते है। फिर इन्ही की देखा देखी निर्लोभी प्रतिष्ठाचार्य भी हवन मे स्त्रियों को बैठाने लग गये। हालाकि उन्हे गठजोडो मे रुपैये रखाने या लेने से कोई सरोकार नही है। इस तरह यह अशास्त्रीय प्रवृत्ति चल पड़ी है ।