________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ 407 फिर तीसरे दिन भरत मे प्रकाश करता है। इसी रीति से ऐरावत क्षेत्र का मस्त हुआ सूर्य पून तीसरे दिन ऐरावत मे प्रकाश करता है / एक सूर्य आधे विदेह को ही प्रकाशित करता है / बीच मे पडे मेरु से विदेह के दो भाग माने जाते है। पूर्व दिशा की ओर के एक भाग को पूर्वविदेह और पश्चिम दिशा की ओर के भाग को पश्चिम विदेह कहते हैं। दोनो भागो मे दो सूर्य का प्रकाश रहता है। निषध और नील पर्वत के बीच मे विदेह क्षेत्र स्थित है। निषध से नील तक जाने मे सूर्य का उतना ही समय लगता है जितना निषध या नील के पूर्व शिरे से पश्चिम शिरे तक जाने मे लगता है। क्योकि जबूद्वीप के कुल 160 भागो मे से 64 भागो मे वीच का अकेला एक विदेह क्षेत्र है / और शेष 63-63 भागो मे दोनो तरफ के दक्षिण-उत्तर के सब कुलाचल और क्षेत्र है / तत्वार्थसत्र के श्री अकलकदेवकृत भाष्य मे मेरु को सव क्षेत्रो से उत्तर मे बताते हुये इस विषय मे निम्न प्रकार प्रतिपादन किया है “पूर्व विदेहे हि सविता नीलादुदेति, निषधेऽस्तमुपैति / तत्र प्राड नील , प्रत्यड निषध , अपाक् समुद्र मेरुरुदक् / अपरविदेहे तु निषधे उदय नीलेऽ स्तमय इति। तत्र प्राड निषध , प्रत्यड नील अपाक् समुद्र , उदड मेरु / उदक्कुरुषु गधमादनादुदयो माल्यवत्यस्तमय / तत्र गधमादन प्राक, माल्यवान् प्रत्यक्, नील अपाक्, मेरु उदक् / देवकुरुषु सोमनसादुदय , विद्युत्प्रभेऽस्तमय / तत्र सौमनस. प्राक्, विद्युत्प्रभः प्रत्यक्, निषधोऽपाक्, मेरुरुदगिति / " [अध्याय 3 सूत्र 10 की व्या ]