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पचकल्याणक तिथियाँ और नक्षत्र ]
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वहाँ किसी भी तीर्थकर की कल्याणक तिथियो का कोई उल्लेख नही है । सिर्फ नक्षत्र दिये है ।
अव हमको यह देखना है कि - कल्याणको की जो तिथिये उक्त तीनो ग्रन्थो मे भिन्न-भिन्न रूप से पायी जाती हैं उनमें से कौन तिथि प्रमाण यानी सही मानी जावे और कौन नही। इसके लिए और नही तो भी यह तो अवश्य विचारणीय है कि उस तिथि के साथ जो नक्षत्र लिखा है वह उस तिथि से मेल खाता है या नही । अगर मेल नही खाता है तो अवश्य ही या तो वह तिथि गलत है या वह नक्षत्र गलत है | इसमे कोई सन्देह नही । क्योकि ज्योतिष शास्त्र का यह नियम है कि हर मास की पूर्णिमा या उसके अगले पिछले दिन मे उस मास का नाम वाला नक्षत्र जरूर आता है । जैसे चैत्र मास की पूर्णिमा या उसके अगले पिछले दिन मे चित्रा नक्षत्र आवेगा । वैशाख की पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र आवेगा । ज्येष्ठा की पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र आवेगा । इत्यादि वास्तव मे मासों के नाम ही मासात मे आने वाले नक्षत्रो के कारण पडे है । जिस पूर्णिमा को जो नक्षत्र है उसके आगे के नक्षत्र जिस क्रम से उनके नाम है । २७ नक्षत्रो के क्रमश: नाम इस प्रकार हैं
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१ अश्विनी २ भरणी ३ कृत्तिका ४ रोहिणी ५ मृग शिरा ६ आर्द्रा ७ पुनर्वसु ८ पुष्य आश्लेषा १० मघा ११ पूर्वा फाल्गुणी १२ उत्तरा फाल्गुणी १३ हस्त १४ चित्रा १५ स्वाति १६ विशाखा १७ अनुराधा १८ ज्येष्ठा १६ मूल २० पूर्वाषाढ २१ उत्तरापाढ २२ श्रवण २३ धनिष्ठा २४ शततारका २५ पूर्वा भाद्रपद २६ उत्तरा भाद्रपद २७ रेवती ॥
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