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क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ]
ही अशो मे खुल गया है जो अबतक चला आ रहा था कि 'यह पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है या श्वेताम्बर' ।
जैन हितैषी भाग ११ मे जैन समाजके ऐतिहासज्ञ विद्वान प० नाथूरामजी प्रेमीका इस सम्बन्धमे एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमे इस ग्रन्थको उस समयका अनुमान किया है जिस समय जैनधर्ममे श्वेताबर दिगबर भेद ही न हुए थे। माथ ही उन्होने लिखा था कि "मैं इसे रविषेणके पद्मचरितसे मिला रहा हू । दोनो सप्रदाय सम्बन्धी कोई खास बात इसमे निकलेगी तो वह आगे प्रकट कर दी जायेगी। इसके बाद फिर कभी इस सम्बन्ध मे उन्होने लिखा या नही यह मेरे देखनेमे नहीं आया। सस्कृत पद्मचरितकी भूमिका भी उन्होने' लिखी पर वहाँ भी प्रेमीजीने एतद्विषयक कोई प्रकाश नही डाला। इसके अलावा 'खडेलवाल जैन हितेच्छुमे भी किसी विद्वानने इस सम्बन्धमे लेख छपाया था। जिसमे पउमचरियको दिगम्बर ग्रन्थ सिद्ध करने की चेष्टा की थी। यह बात उन दिनोकी है जब “हितेच्छु के सम्पादक प० पन्नालालजी सोनी थे।
मैंने जो इसका यत्किचित् तुलनात्मक ढंगसे निरीक्षण किया है उससे मैं इस नतीजेपर पहुंचा है कि 'यह ग्रथ न तो उस वक्तका कहा जा सकता है जिस वक्त कि जैनधर्ममे दिगम्बर श्वेताबर भेद ही न हुए थे, और न यह दिगम्बर ग्रन्थ ही है। यही सब खोज आज मैं पाठकोके सामने रखता है।
यो तो पद्मचरितमें जो कुछ है वह सब पउमचरिय के अनुसार ही है। दोनो ग्रन्थोका रचनाक्रम शब्द और भाव विन्यास अधिकाशमे समानरूपसे पाया जाता है। ऐसा मालूम