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दिगम्बर परम्परा में विक-धर्म का स्वरूप ] [ २३७
४) जानवरों आदि पर उनकी सामर्थ्य के अतिरिक्त बोझा लादना अतिभारारोपण अतिचार है ।
. (५) अपने आश्रित प्राणियो को यथा ममय आहार पानी न देना भोजनपान निरोध नाम अतिचार है।
२. सत्याणुवत
जो जानबूझकर स्थूल झूठ को न तो आप बोलता है और न दूसरों से बुलवाता है तथा न केवल असत्य ही किन्तु सत्य भी ऐसा नही बोलता जिससे सुनने वालो को पीडा पहुँचती हो वह सत्याणुव्रती कहलाता है। यह अणुव्रत का दूसरा भेद है। यहाँ स्थूल झूठ का अर्थ है वह मोटी झूठ जो राजदण्ड के योग्य हो तथा लौकिक दृष्टि मे निंद्य हो, जिसमे विश्वास दिला कर धोखा दिया जाता हो।
परिवाद, रहोभ्याख्यान, पैशून्य, कूटलेखकरण, और न्यासा पहारिता ये पाँच सत्यापुंवत के अतिचार (दोप) हैं। जो इस प्रकार हैं
(१) निंदा करना, गाली निकालना परिवाद नामक अतिचार है।
(२) किसी की गुप्त बात को प्रकाशित करना, यह रहोभ्याख्यान अतिचार है। इससे जिसकी गुप्त बात प्रगट होती है, उसे दुख होता है।
(३) चुगली खाना यह पैशून्य अतिचार है।
(४) कपट से ऐसी तहरीर लिखना जिसका अर्थ सत्यअसत्य दोनो निकल सकतर हो, जैसा कि युधिष्ठिर ने