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२. मथुरा का महावीर पुगीन जैन नरेश । [अनुस. २१] भवरंगसाहि- मुगलसम्राट औरंगजेब (१६५८-१७०७६.) का जैन साहित्य में
वहधा इस नाम से उल्लेख हुआ है। अविडकर्ण- १. आदिपुराणकार जिनसेनस्वामि (८३७ ई०) का एक विशेषण
क्योंकि बाल्यावस्था में ही वह गुरु वीरसेन स्वामि की शरण में
गये थे और बाल ब्रह्मचारी रहे। २. गोल्लाचार्य के शिष्य पयनन्दि कौमारदेव (११वीं शती ई.)
का विशेषण। अविनीत कोंगुणी-- गंगवाडि (मैसूर) के गंगवंश का छठा नरेश, तदंगल माधव
का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, काकुत्स्थवर्म कदम्ब का दौहित्र और शान्तिवर्मन एवं कृष्णवर्मन का प्रिय भागिनेय. शतजीवि, दीर्षकालीन राज्यकाल, महान प्रतापी और परम जिनभक्त नरेश, दिगम्बराचार्य विजयकीति उसके गुरु थे। आचार्य देवनन्नि पूज्यपाद (ल. ४६४-५२४ ई.) ने उसके प्रश्रय में ही अपनी साहित्य साधना की और युवराज दुविनीत को शिक्षित किया। गंग अभिलेखों में महाराज अविनीत को 'विद्वज्जनों में प्रमुख, मुक्तसम्तदानी, दक्षिणापथ मे जातिव्यवस्था एवं धर्म-संस्थाओं का प्रधान संरक्षक' बताया है, और लिखा है कि 'उसके हृदय में महान जिनेन्द्र के चरण अचलमेरू के समान स्थिर थे। उसने कई जिनमन्दिर बनवाये, अनेक मुनियों, नीर्थों और मन्दिरो को दान दिये, साहित्य और कला को प्रोत्साहन दिया । दक्षिणापथ के अपने समय के सर्वमहान नरेशों मे परिगणित। उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी दुविनीत गंग (४८२-५२२ ई.) था। [भाइ
२६०; प्रमुख. ७३; मेजं. १८-१९] अविरोधी मलवार- मूलत: अजैन थे, कालान्तर में बन हो गये, और मयलापूर
के भगवान नेमिनाथ की भक्ति में तमिलभाषा में १०. पद्यों का
एक अत्यन्त सरस अन्नाक्षरी स्तोत्र रचा था। अब्बे- गेरसीप्पे की धर्मात्मा श्रीमती अध्ये ने तथा उनके साथ समस्त
गोष्ठी ने १४१९ ई० मे धर्मकार्यो के लिए श्रवणबेलगोल मे प्रभूत
दान दिये थे। [प्रमुख. २६५] अभयार- पूजनीया आयिका, प्राचीन तमिल साहित्य की बहुप्रशंगित प्राचीन
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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