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________________ शाकंभरी (सांभर) और सबमेरका पाहमाल (चौहाम) नरेश, पृथ्वीरारप्र.का पुष, विग्रहराज १०, पृथ्वीराज बि. बोर सोमेश्वर का पिता, गुजरात के सिंह सिवराज का बामाता, श्वे. आचार्य जिनदत्तसूरि (न. ११५००) का भक्त, इस राबा के अपरनाम बाल, मारण व अन्नमदेव थे, ११३३ ई. के लगभग गद्दी पर बैठा। [शिसं. iv. २६५ (११७० ई.); प्रमुख, २०५; टक.; केच. १९; गुष. १३२-१३] मम्मोनिदेव मुनीना- यापनीयसंघ-कण्डरगण के शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य और उन प्रभाचन्द्रदेव प्रति के गुरु, जिन्हें ९८.१. में, सौन्दत्ति के जिनालय के लिए दान दिया गया था। [शिसं. ii-१६.] अपरनाम मौनिदेव। मर्यनन्वि- दे. बार्यनन्दि। महरि- है. बहनन्दि । अहस्सेन- अनुमानत: पद्मपुराणकार रविषण के प्रगुरु अर्हन्मुनि का अपर. नाम। [जैसाइ. २७३] महत्त- लोहाचार्य (१४ ई. पू.-ई०३८) के तुरन्त उपरान्त होने बाले चार बारातीय (दिग.) यतियों में से एक-संभव है कि भाचार्य अहंवलि से अभिन्न हों। [जैसो. १०६-१०७] महंहास ती. महावीर कालीन राजगृह के एक प्रमुख जिनभक्त श्रेष्ठि, जिनके एकमात्र पुत्र जम्बूकुमार (मन्तिम केवलि जम्बूस्वामि, निर्वाण ई.पू. ४६५) थे-मतान्तर से इस धेष्ठि का नाम ऋषभदत्त या। प्रमुख. २६] महंहास जो श्रवणबेलगोल की सिद्धर बसति के दायीं बाजू के स्तंभ पर उस्कीर्ण १३९८६.के पण्डितार्य की विस्तृत एवं सुन्दर स्मारक. प्रशस्ति के रचयिता हैं। [शिसं.i.१.५] महहास समि-भव्यजनकाण्ठाभरण ( भव्यकण्ठाभरण-पश्विका ), मुनिसुव्रत काव्य और पुरुदेवचम्पु नामक तीन संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता, गव एवं पत्र के सिद्धहस्त लेखक तथा माधुर्य एवं प्रसादादि गुणविशिष्ट कुशल कषिपं. आशाघर के भक्त एवं प्रशंसक, संमबतया शिष्य अथवा निकट उतरवर्ती विद्वान, समय ल. १२५० ई०। इन्होंने शायद एक सरस्वतीकल्प भी रचा था। [प्रमुख, २१२; जैसाइ. १३८-१४३] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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