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________________ अम्बनामि- महानायक रेवग्य का पुत्र, चातुर्वणषममसंघ का सहायक, बंक- . नाथपुर में, १०वीं शती ई. में, समाधिमरण किया। [शिसं. iv. १०७] बर बरनाथ, १८वें तीर्थकर, वें चक्रवर्ती, १४थे कामदेव, हस्तिनापुर के कुरुवंशी नरेश सुदर्शन और महारानी मित्रसेना के सुपुत्र । बहुधा 'अरह' या 'अरहनाथ' लिखा जाता है. जो गलत है। बरकोति- यापनीयनंदिसंघ-पुत्रागवृणमूलगण के माचार्य विजयकीति के शिष्य, और राष्ट्रकूट सामन्त पाकिराज के गुरु, जिसकी प्रार्थना पर राष्ट्रकट सम्राट गोविन्द तु. प्रभूतवर्ष ने, ८१२ ई० के कदन ताम्रशासन द्वारा उक्तगुरु को शीलग्राम के जिनेन्द्र मन्दिर के लिए जलमंगल नामक ग्राम प्रदान किया था। [मेज. ८८% प्रमुख. १..] दे. अकंकीति । भाट्टनेमि कुरति-गुरुनी आयिका, तमिलदेशस्थ प्राचीन दिग. जैन आपिकासंघ की एक आचार्या, मम्मई कुरसि को शिष्या। [देसाई. ६७] अरटनेमि मटार- एक तमिलदेशस्थ प्राचीन शि. ले. में उल्लिखित पेरयाकुडि के __ दिगम्बराचार्य, जिनकी आर्यिका शिष्या गुणन्दांगी कुरत्ति थीं। [देसाई.६९.] अरद्विति- धर्मात्मा सामन्त महिला, पुत्र सिंगम के जिनदीक्षा लेने पर, कुडलर दुर्ग के निकट का बहुतसा क्षेत्र धर्मार्थ दान कर दिया था -शि, ले. गंग नरेश श्रीपुरुषमुत्तरस के काल का, ल. ७५० ई. का है। [शिस. ii. १२०] अरयन उडमान-ने १०६८ ई. में करन्द (मद्रास प्रांत) के एक जिनालय के लिए दान दिया था। [शिसं. iv. १५०-१५१] मरयम्म- ९१५६० के, राष्ट्रकट इन्द्र त. के, वजीरखेड़ा ताम्रशासन के अनुसार इस नरेश की जननी महारानी लक्ष्मी के मातामह, वेमुलवाड के जिनधर्मी चालुक्य नरेश सिंहक (नरसिंह) के पुत्र बरयम्म या अरिकेसरी। (शिसं. v. १४; शोधांक-२४] भरतष्ठि - राघव-पान्डवीय काव्य के कर्ता, संभवतया दिग. विद्वान । मरसप्पनायक-१. प्रथम, सोंदा राज्य का संस्थापक जिनधर्मी नरेश । [देसाई. १३१] २. द्वितीय, बरसप्पनायक प्र. का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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