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पीं। सारा परिवार परम्परागत परम जैन था। मुनिराज अभिनव समन्तभद्र के उपदेश से प्रेरित होकर इस पारमा सेठ ने, १५६.६० में, योजणवेष्ठि द्वारा निर्मापित नेमीबर जिना. लय के सामने कांस्य धातु का एक अतिभव्य, कलापूर्ण एवं उसंग मानस्तंभ स्थापित किया. जिसमें चार मनोश जिनबिमा स्थापित किये और ऊपर ठोस स्वर्णकलश चढ़ाया, महोत्सव किया और वानादि दिये । [प्रमुख. २७५, २७६; मेजं. ३४५३४७: एक. viii. ५५] प्र. एवं द्वि. दे. अम्बराज प्र. एवं हि. [मेज. २५१-२५२] अपभ्रश महाकवि पुष्पदन्त (९६५ ई.) के एक प्रशंसक -कवि के मेलयाटी आने पर उनकी सर्वप्रथम भेट, उक्तनगर के बाहर बन में, इन अम्मइय तथा इनके मित्र इन्द्र से हुई थी।
[साइ. ३०८, ३२१, ३७६] अम्मगार
वेणर ग्राम के रट्ट नरेश लक्ष्मीदेव का जैन सामन्त, जिसने १२०९ ई० में, महाराज की अनुमतिपूर्वक, चिंचुणिके के पार्श्वनाथ जिनालय के लिए, स्वगुरु कनकप्रभ द्वि. को, जो यापनीयसंघ-कारेयगण-मेलापान्वय के कनकप्रम प्र. के प्रशिष्य और
विद्य चक्रेश्वर श्रीधरदेव के शिष्य थे, भूमिदान किया था। [देसाई. ११८] दानशील धर्मात्मा पट्टणसामि नोक्कय्य सेट्टि (१०६२-७७ ई.) का पिता। [मेजे. १७४, १७८; प्रमुख.१७३] या अम्मण भूमिपाल, हुमच्च के सांतरवंशी जैन नरेश तैल तः त्रिभूवनमल्ल जगदेकदानी (१९०३ ई.) की द्वितीय रानी अक्कादेवी (अक्कखा देवी) का तृतीय पुत्र, ११५९ ई० ।
[प्रमुख. १७४; शिसं. iii. ३४९] अम्मनदेव सान्तर- हम्मच नरेश चिकबीर बान्तर और रानी बिज्जलदेवि का
पुत्र, होचलदेवि का पति, तलपदेव प्र. और राजकुमारी बीर. बरसि का पिता, धर्मात्मा जैन नरेश, समय ल. १०५. ई.। [प्रमुख. १७२] राष्ट्रकट नरेश इन्द्र तृ. (९१४-२२६.) का जैन सेनापति, जिसने कोपबल तीर्थ की यात्रा की थी और दानादि दिये थे,
अम्मण
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष