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अमवामि- माधनन्दि के शिष्य मेघचन्द्र की भतीजी, प्रसिद्ध गायिका, म.
११०० ई० । [णिसं i. ५५] कुमारपाल मोलंकी के जैन दंडनायक सोभनदेव के पुत्र बोर बमन्तपान के पिता ने ११९९ ई० में नन्दीश्वर - विम्ब प्रतिष्ठा
की थी, परम जन था। [गुच. २९५.२९६] समयतिलक- श्वे विद्वान, जैन एवं अर्जन न्यायशास्त्रों के प्रसिद्ध टीकाकार,
यथा पंचप्रस्य-न्यायतर्क-व्याख्या या न्यायालंकार टिप्पण, न्यायसूत्रटीका, न्यायभाष्यटीका, न्यायवातिक टीका, तात्पर्यवृत्तिटीका, न्याय-तात्पर्यपरिशुद्धि टीका, आदि, । शायद इन्हींने हेमचन्द्राचार्य कृत सं. दयाश्रय काव्य की वृत्ति. पालनपुर में १२५५ ई० में रची
थी -यह जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे। [कंच १६७] अमयदेव- यशोदेव का पुत्र और गुजरात नरेश कुमारपाल चौलुक्य का सेना
पति । राजाज्ञा से ल. ११६. ई. में तरोरा नामक स्थान में ती.
अजितनाथ का भव्य एवं विशाल जिनमंदिर निर्माण कराया था। अभयदेव- १. इनके शिष्य वर्धमान ने, गुजरनरेश जयसिंह सिद्धराज के
शासनकाल में, १११५ ई. में, देवक्करग्राम में, धर्म-रस्नकरण्डक नामक ग्रन्थ की रचना की थी। टिक.] २. दिग. श्रावक, जिसने अपनी भार्या मल्ही एवं पुत्र केसो सहित ११३ई. में कांस्य जिनप्रतिमा प्रनिष्ठापित की थी, जो अब सोनागिर के एक मंदिर में विराजमान है। [जैशिस. १७९] ३. स्तंभन-पार्श्वनाथस्तोत्र (हिन्दी) के रचयिता, जो दिल्ली के दिग. अनमदिर के शास्त्रभंडार के एक गुटके (लिपि १५६९ ई०) में सुरक्षित है। ४. गुणभद्रसूरि के शिष्य और त्रिभंगीसार-टीका के कर्ता सोम.
देवसूरि के पिता- ल. १६०० ई.। अमयदेवसूरि-१. तर्कपञ्चानन, प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य जी राजगच्छीय प्रद्युम्न
सूरि के शिष्य थे, और जिन्होंने ल. ९६८ ई. में, सिखसेनकृत सन्मति-सूत्र की तत्वबोध-विधायिनी अपरनाम बादमहार्णव नामक टीका रची थी। [पूवासू.]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष