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२१. उसी स्तोत्र में अन्यत्र स्मृत अभयचन्द्रमुनि सिद्धान्तवेदी, जिनका उल्लेख पं. आशाधर (ल. १२००-५० ई०) के पश्चात हुआ है, और जिन्हें केशवायं आदि कई राजाओंों द्वारा पूजित रहा बताया है । [ प्रसं. १३५; जैशिसं. iii. ६६७; एक. vili. ४६; शोघांक-४८ ]
२२. प्रचवनपरीक्षा, प्रतिष्ठा तिलक आदि ग्रन्थों के रचयिता पं. नेमिचन्द्र के गुरु अभय चन्द्रसूरि - नेमिचन्द्र का समय ल. १४०० ई० है । [शोषांक-४८; प्रसं १०१]
२३. नन्दि संघ के निर्ग्रन्थाचार्य अभयचन्द्र त्रैविद्यचक्रवर्ती, जिनकी प्रेरणा से भट्टारक नेमिचन्द्र ने, १५१५ ई० में, चित्तोड़ दुर्ग में गोम्मटसार की जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम्नो संस्कृत टीका रची थो - उक्त टीका का शोधन-सम्पादन करके उसको प्रथम प्रतिलिपि इन्हीं अभयचन्द्र ने की प्रतीत होती है । [शोधांक-४८; पुर्जेवासू. ८९ ]
२४. नन्दिसंघ की लाड- बागड शाखा के भ. अभयचन्द्र, जो सूरत पट्ट के भ. लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य थे, और अभयनन्दि एवं पद्मकीर्ति ( १५४० ई० ) के गुरु थे । [ शोधांक-४८ ]
२५. भ. अभयचन्द्र, जिनके मारवाड़ निवासी शिष्यद्वय व धर्मरुचि एवं ब्र. गुणसागर पंडित ने १४९९ ई० में श्रवणबेलगोल की यात्रा को थी । [ जैशिसं. i. ३३२; मेजे. ३२६]
२६. उन रत्नकीर्ति के प्रगुरु भ. अभयचन्द्र, जिनको शिष्या आर्यिका वीरमती ने, १६०५ ई० में, मैनपुरी (उ. प्र.) में जिन प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी- १६०६ ई० के बालापुर के जिन प्रतिमा लेख में भी संभवतया इन्हीं का उल्लेख है । [शोधांक४८ ]
२७. ध्यानामृत तथा भव्यजनकंठाभरण नामक ग्रन्थों के रचयिता अभयचन्द्र - १२०० और १३०० ई० के मध्य हुए प्रतीतहोते हैं । २८. क्षीरोशनी-पूजाष्टक (१४९१ ई०) के रचयिता अभयचन्द्र ।
ऐतिहासिक व्यक्तिको