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नं.८ प्रमिषा, कर्नाटक-शब्दानुगासन के कर्ता भट्टाकन देव के गुरु, समय ल. १५५०-७५ सोन्दागरेश बरसप्प नावकी ने अपने १५९८०के ताम्रशासन मे सयं को इन बकलरदेव का प्रिय शिष्य कहा है।
होषांक-११.१४देसाई. १३०-१३१] ११- भट्टाकलादेव, सुधापुर के मेट्टारक, नं० १. शिष्य, विजयनगर मरेश वेष्टपतिराव(१५५६-१६१५१.)द्वारा सम्मानित, सुषापुर में ही विविध मान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की, छः भाषानों में कविता कर सकते थे, विभिन सम्प्रभावों के न्याय शास्त्र में निष्णात, निपुण टीकाकार, कला एवं संस्कृत भाषावों के व्याकरण के महापरित, बनैक नरेशों की सभागों में गादविजय करके चैनपर्म की महती प्रभावना की, मचरीमकरंद (१६.४.) तथा सुप्रसिद्ध कसरी व्याकरण कर्णाटक-सम्मानुशासन के रचयिता थे जिसके कारण लोकप्रसिद्ध हुए, १५८७१. केहिले. (मि. iv ४९.) तथा १६०७६० के शि. ले. (वैक्षिसं iv ५.२) में भी इन्हींका उल्लेख है। संभवतया १६०७ १० में इनका स्वर्गवास हुवा था। [शोषांक-१ पृ. १४;बार. नरसिंहाचार्य कर्णाशम्दानु. भूमिका
एवं कर्नाटक-कविचरित] १२- अकलर-प्रतिष्ठापाठ या प्रतिष्ठाकल्प के रचयिता मटाकमदेव, जिसमें जिनसेन (९वीं शती) से मेकर सोमसेन विवर्णाचार (प्राचीनतम उपलब्ध प्रति १७०२१०) तक के उडरल-उल्लेख बदि प्राप्त है, बत:ल. १७.०६.।
शोषांक-११प्रसं० १६५-८,१६७] १३- वादि बलमुनि, ल. १७४.०, वो विवयकुमारकये के पत्तो पद्मराब के गुरु थे। शोषांक-१/१५] १४- भट्टाकलामुनिप, देशीगण-पुस्तकगच्छ के कनकगिरि (काल) के भट्टारक, १८१३१. में समाधिमरण सियापा।
एक. iv, १४,१५०; शोषक-१/१४] १५-बस्तीपुर के एक निश्चित तिपिके लि.ले. में उल्लिषित,