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बोर माणिक्य-भण्डारि मरियाने, महाप्रधान दण्डनायक भरत aer mrकरण हेगडे चिमय्य जैसे होयसल राजपुरुषों द्वारा गुरूरूप से पूजित । [तिसं. ४०; शोधांक.११ : ४- विवेक जरी वृत्ति (११९२ ई०)
के कर्ता अकलङ्क ।
[सं० पं०, व्या० कु० च० - प्रस्ता० २५; शोधांक- १] ५- अकलङ्कचन्द्र, मूल नंदिसंच सरस्वती गच्छ बलात्कारणच की पट्टावली में ७३ में गुरु, वर्द्धमानकीति के पश्चात और ललितकीर्ति के पूर्व समय ११९९-११०० ई० ।
[ईए० x ३४१-६१; शोधांक- १] ६- कलकेरे के भट्टारक answer जिनके लिए मूलसंघ कुन्दकुन्वान्वय-कारगण - तिम्मिभिगच्छ के माचार्य भानुकीर्ति सिद्धान्तदेव के गृहस्थ शिष्य हानिनावुड ने पार्श्वनाथ - जिनालय निर्माण कराया था, ल० ११ वीं शती ई० ।
[देसाई १४५, ३९०; शिसं iv ६१९] ७- अकलकुदेव, जिन्होंने इबिसंघ- नन्यान्मय के वादिराज मुनि के शिष्य महामंडलाचार्य - राजगुरु पुष्पसेन के साथ १२५६ ई० में हुम्मण में समाधिमरण किया था।
[ एक viii, मागर ४४; जैशिसं iii, ५०३; शोधांक- १] ८- अकलसंहिता तथा श्रावक - प्रायश्चित (१३११ ई०) के कर्ता कलङ्क भट्टारक, संभवतया पोरवाड़ जातीय ।
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[केचं न्या०] कु० च० प्रस्ता० २५; प्रसं १५० ; शोषांक - १] ९- अलमुनिप, नंदिसंध बलात्कारमण के जयकीर्ति के शिष्य, चन्दप्रभ के सधर्मा, विजयकीर्ति, पाल्यकीर्ति, विमलकीर्ति, श्रीपाल कीर्ति और आर्यिका चन्द्रमती के गुरु, संगीतपुरनरेश सालुवदेवराय द्वारा पूजित, बंकापुर में मादनएल्लप नृप के मदोन्मत प्रधान गजेन्द्र को अपने तपोबल से शान्त करने वाले, स्वर्गवास १५३५ ई० [ सं १२९, १४४: शोधांक- १]
१०- अकल कुदेव - संगीतपुर (हाइबल्लि, दक्षिणी कनारा जिला) के मूलसंघ - देशीगण-पुस्तकगच्छी पट्ट के भट्टारक, श्रवणबेलगोल मठाचार्य चारुकीति पण्डित के परम्परा शिष्य,
ऐतिहासिक व्यक्तिकोव