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वाचार की भाषा मचनिका लिखो वो एक रत्नत्रयपूजा की भी रचना की थी। जन्म १७८३ ई०, पिता शोषचंद निगोत्या, पुत्र पं० पारसवास निगोत्या । [ काहि. २२० कास. २४५, २५२; कंच. १५९ ]
७. पं० ऋषभदास, दिन. मग्रवाल, सुलतानपुर- चिलकाना (जिला सहारनपुर, उ० प्र०) निवासी, धर्म तथा हिन्दी, संस्कृत, उर्दू एवं फारसी के ज्ञाता, कवि, लेखक एवं विद्वान, १८८६ ई० में हिन्दी पद्य में पंचबालयति पूजापाठ व सुभराग की हेयोपादेयता की और उर्दू में मिध्यात्वकनाशक नाटक की रचना की। [ अनेकान्त, ३०/२, पृ. ३४]
८. हम जातीय लघुशासा सरजागोत्री संघई नाकर एवं नारंगदे के पुत्र संघ ऋषभदास ने अपनी भार्या एवं पुत्र धर्मदास सहित स्वगुरु भ० पचनन्दि के उपदेश से कारंजा में पापप्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी । [ प्रमुख. २९३]
ऋषम मन्दि- या ऋषमनस्याचार्य कर्मप्रकृति ( प्रा० ), कर्मस्तव (सं०) तथा कर्मस्वरूपवर्णन (ड) के रचयिता, समय ल० ९५०-७५ ६० । ऋमसेनगुरु के शिष्य नागसेनगुरु ने ल० ७०० ई० में, श्रवणबेलगोलस्थ चन्द्रगिरि पर समाधिमरण किया था। [जैशिसं . १४] १०८० ई० के दानशील जायसवाल श्रेष्ठि दाहट का अग्रज, जयदेव का पुत्र व जासूक का पोत्र - पंडोभनिवासी, नगरसेठ | प्रमुख. २१३; गुच, ७९]
ऋषिगुप्त - हरिवंशपुराण (७८३ ई०) मे प्रदत्त पुज्ञादसंघ की गुरु परम्परा में तीसरे गुरु, विनयधर के प्रशिष्य श्रुतिगुप्त के शिष्य, और शिवगुप्त (बलि) के गुरु ।
श्रविवास-- ती. महावीर के तीर्थ के प्रथम अनुत्तरोपपादक मुनिराज । विवासवाचक- मथुरा के प्रथम शती ई० के एक जैन प्रतिमालेस में उल्लि fear जैनाचार्य वाचक वार्य ऋऋषिदास । [वैशिसं. iv. १६] ऋषिपालित- श्वे०, इन्द्रदिन के प्रशिष्य शान्ति श्रेणिक के एक शिष्य -१० प्रथम शती ई० ।
ऋषिपुत्र
१. पुरातन जैन ज्योतिबाचार्य, गर्गाचार्य के साथ उल्लेखित, ल० ७०० ई०, किसी प्राकृत ग्रन्थ के कसी
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
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