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की— इसका उत्तराधिकारी सीधक उपनाम हर्ष था। [ प्रमुख, २१०; भाई. १६६ ]
श्रीमाल का एक राजपूत, बोसिया का राजा हुआ, वहाँ रत्नप्रभ सूरि द्वारा अपनी प्रजासहित जैनधर्म में दीक्षित हुआा- ये ही लोग व इनके वंशज बोसवाल कहलाये । [कंच. ९४]
उप्पलक- नाडोल के जैन चाहमान नरेश अश्वराज (१११० ई०) का जैन [ कंच. २०]
८००
ई०) द्वारा उल्लिखित
उप्पलदेव-
उमट
उमयचक्रवर्ती
उमयण्ये
उमयाचार्य- मूलसंघ- देशीगण - हमसोगेजलि के दिगम्बराचार्य को कोमलबसदि के अध्यक्ष मे, मोर जिन्हें होयसल नरेश बीर बल्लाल द्वि.
( ११७३-१२२० ई० ) के शासनकाल में दान दिया गया था । वह होयसल नरेश रामनाथ द्वारा भी सम्मानित हुए ये 1 [देसाई. १५१; प्रमुख. १६४ ]
या मक्के, विष्णुवर्धन होयसल के करणिक ( एकाउन्टेन्ट) तथा अजितसेन भट्टारक के गृहस्थ शिष्य, और ११४५ ई० के लगभग श्रीकरण नामक भव्य जिनालय का निर्माण कराने वाले माडिराज अपरनाम मानव की धर्मात्मा भार्या। [जंशिसं. lii. ३१९; एक. iv. १०० ]
राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष प्र० (८१५-७६ ई०) की पट्टमहिषी, जिनभक्त राजरानी | [ प्रमुख. १०४ ]
१. तस्वार्थ सूत्रकार आचार्य उमास्वामि का अपरनाम - दे. उमास्वामि ।
जमादेवी
महासाहणीय ( चुड़सालाध्यक्ष ) या उद्रट, महाकवि स्वयंभू (स० प्राकृत भाषा के पुरातन कवि ।
उमास्वाति-
अपरनाम सारस्वत पुराणाचार्य, कलर भाषा के पुराणचूडामणि (५६००) नामक ग्रन्थ के रचयिता, ल० १४०० ई०प्राचीनतम प्राप्त प्रति १४६१ ई० की है ।
२. उमास्वाति या स्वाति, श्वेताम्बराचार्य, जिनका जन्म ५६० ई० में हुआ बताया जाता है, और जो ३०वें युग प्रधानाचार्य जिनमद्रगणिक्षमाश्रमण के स्वर्गस्थ होने पर ३१ वें युग प्रधानाचार्य बने थे, ७वीं शती ई० के प्रारंभिक दशकों में।
तस्वार्थसूत्र के
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
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