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मंदिर के सम्मुख भन्य मण्डप बनवाया था और १३९४ . में एक विशाल सरोवर का उस्कृष्ठ बाँध बनवाया था। वह एक कुशल अभियंता (इंजीनियर) और भारी विज्ञान भी था -जानाधरत्नाकर नामक महत्वपूर्ण सस्कृत कोश सी की. रपया है। लगभग ४० बर्ष साम्राज्य की निष्ठापूर्वक सेवा करके १४०४ ई. के लगभम उसका स्वर्गवास हुमा। [प्रमुख, २६७-२६८3 भाइ. १६७-३६८ शिसं.i.८२: iii. ५७९, ५८१, ५८६, ५८७; iv. ४०३, ४०४; v. १८२, १९२; मे.
प शr.- अपने चाचा का नामराशि, विजयनगर साम्राज्य का यह
सचिबकुलाग्रणी वण्डावोस इरुगप द्वि. महाप्रधान बैच-माधव का पौत्र, महाप्रधान-सर्वाधिकारी इरुग प्र. एवं दण्डनायक बुक्कण का भतीजा, और दण्डनाथ मंगप की भार्या जानकी से उत्पन्न अत्यन्त शूरवीर, यशस्वी, कुशल राजनीतिक और धर्मात्मा था। सम्राट देवराय दि. (१४११-४६ ई.) के तो प्राय: पूरे राज्यकाल में यह साम्राज्य का प्रमुख स्तंभ बना रहा-१४४२ ई. में वह साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण प्रान्त चन्द्रगुप्ति एवं गोआ का सर्वाधिकारी शासक था। वह श्रवणबेलगोल के पीठाध्यक्ष पंडिताचार्य का भक्त था, जिन्हें उसने १४२२६० में गोम्मटेश्वर की नित्य पूजा हेतु एक ग्राम दान दिया था तथा एक विशाल सरोवर एवं सुन्दर उद्यान समर्पित किया था। वह अनन्य जिनभक्त भोर बड़ा सदाचारी था। उसका सहोदर दण्डनाथ वैचप दि. भी बड़ा युद्धवीर, बिजेता एवं भव्याग्रणी जिनभक्त था। [प्रमुख. २६८; भाइ. ३७१; शिसं. i. ५२; मेज.
३०७] हरगोन
१२वीं-१३वीं शती ई. में, मैसूर प्रदेश के उत्तरी भाग के एक हिस्से पर जिनधर्मी निहगलवशी राजाओं का राज्य था, जो स्वयं को चोलमहाराज-माताकुलभूषण-उरैयूरपुर-वराधीश्वर कहते थे। इनके सुदृढ़ पहाड़ी दुर्ग का नाम कालाजन था। बंश का तीसरा राजा मंमिनृप था। उसके पौत्र गोविन्दर का पुष एवं उत्तराधिकारी गोनप्र. था, जो गुणचन्द्र के
ऐतिहासिक व्यक्तिकोड