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________________ इम्मडिवरच का जिनधर्मी नरेश, जिसने १५२३ ई० में वरांग की बसदि के लिए भैरवपुर ग्राम दान किया था । [शि. iv. ४६१] इरिव बेड -- गंगनरेश वीरबेडङ्ग नरसिंह सत्यवाक्य जो कोमर वेट एरेगंग नीतिमागं (९०७-१७ ई०) का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था और राजमल्ल सत्यवाक्य तृ. (९२०-३७ ई०) तथा प्रतापी गगनरेश बूलुग (९३७-५३ ) का पिता था, तथा द्रविलसंगी त्रिकालमनि भट्टारक के शिष्य मुनि बिमलचन्द्र पण्डित का बृहस्थ शिष्य था । [जैशिसं. ii. १४२, १६६; प्रमुख, ७८,७९ ] इरिव बेग सत्यापय- कल्याणी के उत्तरवर्ती चालुक्य वंश का सरा सम्राट, तैलप द्वि. का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, जिनधर्मी नरेण, राज्यकाल (९९७-१००९ ई०), राष्ट्रकूट सम्राट इन्द्रचतुर्थ का प्रतिद्वन्द्वी भी और प्रशंसक मित्र भी, महासती अतिमब्बे के वीर पति नागदेव का भी परम मित्र, रन एवं पोश नामक कन्नड के महाकवियों का प्रश्रयदाता, वीर, प्रतापी, उदार एवं धर्मात्मा । कहीं-कहीं नामरूप एलेवबेटेज भी मिलता है । [ प्रमुख. ११५; जैशिसं. 1. ५७ ] इदम बण्डनाथ- इरुगप प्र०, थिरुमप, इरूगेन्द्र या इरुगेश्वर बिजयनगर के प्रारंभिक नरेशों के सर्वप्रसिद्ध जनमन्त्री एवं महाप्रधान बंब, बचप या बैचप माधव का द्वितीय पुत्र मंग और aeer नामक दण्डनाथों का भाई, स्वयं प्रसिद्ध दण्डनाथ ( सेनापति ) और राज्यमन्त्री था । पिता की मृत्यु के उपरान्त वही सम्राट हरिहर डि. (१३७७-१४०४ ई०) का महाप्रधान नियुक्त हुआ । वह जैनाचार्य सिंहनंदि का गृहस्थ शिष्य था । उसने १३६७ ई० में चलूमल्लूर में एक जिनमंदिर बनवाया था व दान दिया था. १३८२ ई० में तमिल देशस्थ तिरुपतिक्कुम्ह के त्रैलोक्यवल्लभ जिनालय के लिए एक ग्रामदान किया था १३८५ ई० में राजधानी विजयनगर में अत्यन्त कलापूर्ण पाषाणनिर्मित सुप्रसिद्ध कुन्थुनाथ बरवालय बनवाया जो कालान्तर में गणिगिति - बसदि ( तेलिन का मंदिर ) नाम से प्रसिद्ध हुआ, १३८७ ई० मे स्वगुरु पुष्पसेन की आशा से काँधी के निकट स्वनिर्मापित ऐतिहासिक व्यक्तिकोश १२३
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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