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सिंह-वे, भुवनभानुचरित्र (१४९० ई०), बनि नरेन्द्रकथा, मोर 'मन्ह जिणाण' की कल्पवल्ली टीका के
संभवतया कारंजा की काष्ठाची गहो के म. लक्ष्मीन के शिव्य । इन्होंने १६५८ ई० में काष्ठा-लाडगडगच्छ के म. sarvata की नाम के बरवाल आपकों के लिए fre प्रतिष्ठा कराई थी । संभवतया इन्हीं का अपरनाम इन्द्रभूषण था। [ प्रभावक. १०२ ]
इगवेव
इसे पण्डितदेव- द्रविलसंच- सेमवण-कोहरगच्छ के आचार्य इसे
इन्द्रायुध
जिन्हें, ११६७ ई० में, आन्ध्रवेश के अधिपति श्रीबल्लभचोल को राजधानी उज्जियोलनके बद्दिजिनालय के लिए भूमिदान आदि दिये गये थे । मंदिर की मूलनायक प्रतिमा बेलपाश्वदेव थे। [जैशिसं V. १०३, १०४ ]
बाचार्य जिमसेन पुनाट के हरिवंशपुराण (७८३ ई०) के उल्लेखानुसार उससमय उक्त ग्रन्थ के रचनास्थल वर्द्धमानपुर (बदनावर, म. प्र. ) की उत्तर दिशा मे इन्द्रायुध का राज्य था -वह कन्नौज के भष्टि या वर्मवंशी नरेश बज्रायुध का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था । स्वयं उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी चक्रायुध था, जिससे गुर्जर प्रतिहार बमराज के पुत्र नागभट्ट द्वि. (आमराज ) ने कशीज का राज्य छीना था । [भाइ. १५७; जैसो. १९६ - २०१ ; हरिवश. ६६ / ५३ ।
इब्राहिम लोदी- दिल्मो का तीसरा एवं अन्तिम लोदी सुल्तान (१५१७-२६
ई०), सिकन्दर लोदी का पुत्र एव उत्तराधिकारी, फुरुजांगल देश का स्वामि इसके राज्यकाल मे, १५१० ई० में, काष्ठासंची म. गुणभद्र की माम्नाय के जंसवाल चोधरी जगसी के पुत्र बो० टोडरमल ने श्रीचन्द्रकृत उतरपुराण-टोका की प्रति कराई बी; १५२० ई० मे योगिनीपुर निवासी गगंगोत्री अग्रवाल साहू बोरदास ने फीरोजाबाद दुर्ग मे मुनि विमलकीति को सुलोचना चरित की प्रति दान की थी; १५२३ ई० मे सिकदराबाद में म. निचन्द्र के शिष्य भ. प्रभाचन्द्र के शिष्य ब्रह्म बीटा को यशोधर चरित्र की प्रति दान की गई बी; काष्ठासची आम्नाय के एक वसेद्द निवासी
१५२५ ई० मे गयंगोत्री अग्रवाल
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
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