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शायद इन्ही की गृहस्य शिष्या दुलमबाई ने, जो गोबसगोत्रीय बबेरवाल जातोय मो, १६५० ई० में नागपुर में बिम्ब प्रतिष्ठा फराई थी। ऐसे कई लेखों में इनका उल्लेख है इनके शिष्य सुरेन्द्रको तिथे । यह कारंजा पट्ट के भट्टारक थे - एक लेख में इन्हे चन्द्रकीर्ति का प्रशिष्य मिला है। [जंशिसं. iv, पृ. ४०६-४११]
इन्द्ररक्षित - पाला (बि. पूना, महाराष्ट्र) के समीप वन को एक गुहा मे प्राप्त ४ पंक्तियों के ब्राह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा के लेख मे अरहंतों को नमस्कार करके, भदंत इंदरखित ( इन्द्ररक्षित ) द्वारा उक्त लेण (गुहा) तथा वहीं एक पोढि ( जलकुण्ड ) के बनवाये जाने का उल्लेख है समय ल० दूसरी शती ई० । [शिसं. v. १पृ. ३]
राष्ट्रकूट वंश का अन्तिम नरेश, इन्द्रचतुर्थ, बड़ा वीर योद्धा पोलो का प्रसिद्ध खिलाडी, रट्टकन्दर्प, राजमार्तण्ड, कलिनलोलगंड, बोरर बोर, कीर्तिनारायण आदि प्रतापसूचक उपाधियों का धारक, गंगगमिय का दौहित्र, गंग मारसिंह का मानजा राजचूडामणि का जामाता, राष्ट्रकूट कृष्ण तृ० का पौत्र । इस बोर ने ९८२ ई० में श्रवणबेलगोल में समाधिमरण किया था । देखिए चतुर्थ राष्ट्रकूट (न०८) [शिसं . ३८, ५७;
इन्द्रराज
१६४; प्रमुख. १११-११२; भाइ. ३०९]
नामक अन्य नरेशों के उल्लेखों को भी 'इन्द्र' के अन्तगंत देखें |
इमराज-
इन्द्रराज सिंघवी- जोधपुर राज्य का प्रसिद्ध जेन युद्धवीर, सेनापति एवं मन्त्री
सर्वाधिकारी, कुशल राजनीतिज्ञ, महाराज विजयसिंह, भीमसिंह और मानसिंह के शासनकालों में राज्य का स्तंभ बना रहा । अन्तिम राजा के समय में, १८१६ ई० में, अपने शत्रुओं के षडयन्त्र से मारा गया। [ प्रमुख. ३३४-३३६ ]
इवामदेव, पंडित- त्रिलोकसार- दीपक प्राकृत (दिल्ली-सेठ का कूंचा, २०४९)
के कर्ता ।
इत्रणी
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rinोजीम बनवाल दिग० जैन साह सोनू की धर्मात्मा भार्या, जिसने १५४३ ई० में वर्द्धमान-काव्य की प्रति लिखकर दान की बी । [ प्रसं. १८७ ]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश