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माशा
माशाघर, पं०
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पुत्र,
गृहपतिबंदी जैन श्रेष्ठि महिपति का धर्मात्मा ! जिसने १९५१ ई० में, मण्डलिपुर में जिनबिन्द प्रतिष्ठा कराई थी। [जैशिसं. iii. ३३६; प्रमुख. २२६]
I
ईडर निवासी धर्मात्मा सेठ ने पत्नी लक्ष्मी और पुत्री शिला सहित, म. वाडीभूषण के उपदेश से नेमिनाथ बिम्ब प्रतिष्ठा को बी -ल० १५९० ई० । [ कंच. ७७ ] शाकम्भरी प्रदेश के माण्डलगढ़ दुर्ग के सल्लक्षण बबेरवाल और उनकी भाय प्रवर आजावर साहित्यिक महारथी थे जब ११९३ ई० में, इनकी बाल्यावस्था में हो, मुहम्मदगोरी ने अजमेर पर अषिकार किया तो इनके परिवार ने जन्मभूमिका परित्याग करके धारानगरी में शरण ली, पिता सल्लक्षण परमारनरेश अर्जुनवम (१२१०-१५ ई०) के सन्धिविग्रहिक मन्त्री हो गये, और वहाँ पं० महावीर प्रभूति विद्वानों के निकट आशाधर ने अपनी शिक्षा पूरी की। तदनन्तर उन्होंने नालछा को अपना आवास एवं साधनाकेन्द्र बनाया, वहाँ एक विशाल विद्यापीठ स्थापित किया, और १२२५ ई० से १२४५ ई० के मध्य लगभग चालीस विविधविषयक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की संस्कृत में रचना की । नयविश्वचक्षु, प्रज्ञापुंज, कविराज, सरस्वतीपुत्र, आचार्यकल्प, सूरि बादि अनेक सार्थक बिरुद उन्हें तत्कालीन जैन एवं अर्जन विद्वानों से प्राप्त हुए । उनके शिष्यों में उदयसेन मुनि, वादीन्द्र विशालकीति, मदनकीर्ति, पं० देवचन्द्र, भ० विनयचन्द्र, पं० जाजाक, कविवर अर्हदास प्रमुख थे, और भक्त श्रावकों में धर्मात्मा हरदेव, महीचन्द्र साहु, केल्हूण, घनचन्द्र, धोनाक आदि गणनीय थे। बिल्हणकवशि और बालसरस्वती मदनोपाध्याय
दुर्गपति दिग. श्रावक रत्नी के सुपुत्र पंडित
पंडित जी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है, परमार नरेश विन्ध्यवर्मा, अर्जुनवर्मा, सुभटवर्ग, देवपाल और जंतुगिदेव उनके प्रश्रयदाता थे । पंडितजी की धर्मपत्नी सरस्वती यथानाम तथा गुण थी, और पुत्र खाहड़ राज्यमान पदाधिकारी था । जीवन की मन्ध्या में पंडित जी उदासीन स्थागी व्रती भावक के रूप में आत्मसाधनरत रहे । [ प्रमुख. २११-२१२; भाई. १६९]
ऐतिहासिक व्यक्तिको श
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