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मानवि- बम्यूबणयन के माचार्य, जिन्हें उनके भक्त सेन्द्रकवंशी इमान्द
अविराज ने,म... ई. में, बहत्पूना एवं साधु यावृत्य के लिए ताम्रपत्र द्वारा ग्राम दान किया था। विसं. iv. २२] १. प्राचीन मपुरा के कोट्टियगण-स्थानीयकुल बैरशाखा के मार्य हस्तहस्ति के शिष्य बोर बार्यममुहस्ति (माषहस्ति या नागहस्ति) के बादपर (श्रद्धाचारी या सधर्मा) वाचक आर्यदेव, जिनको प्रेरणा से १३२ ई. में सिंह के पुत्र लोहिककारक (लुहार) गोव (गोप) ने मथुरा में एक सरस्वती प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। मथुरा के हो १३. ई.के एक लि. ले. में भी बादिवित के रूप में संभवतया इन्हीं का उल्लेख है। [एड.i. ४३/२१; . १४/१८; जैशिस. . ५४, ५५; जैसो. ११५-११६; प्रमुख. ६८] २. सन १.७७ ई. के एक शि. ले. के अनुसार तत्त्वार्थसूत्र के का एक पुरातन आचार्य, जिनका उल्लेख समन्तभद्र, शिवकोटि, बरदत्त और सिंहनन्दि जैसे पुरातन भाचार्यों के मध्य किया गया है। [एक: vili. ३५; जैशिसं. 1. २१३] -संभव है कि सुप्रसिद्ध तस्वार्थसूत्रकार उमास्वामि का ही उप या अपरनाम रहा हो, अथवा इन मार्यदेव का अपना कोई स्वतन्त्र तत्त्वार्थसूत्र हो जो अब अनुपलब्ध है। ३. जम्बूखण्डीगण के आचार्य आर्यदेव, जिनका उल्लेख ९२३ ई. के गोकक ताम्रशासन में हुआ है -वह उस समय विद्यमान रहे प्रतीत होते है। [मेज. २५६] ४. मल्मिषेण प्रशस्ति (११२८.) में परवादिमल्ल और चन्द्रकीति के मध्य उल्लिखित 'रावान्तकर्ता आचार्यवयं आर्यदेव जिन्होंने कायोत्सर्ग अवस्था में देहत्याग करके स्वयं प्राप्त किया
बा' ल. ७७५.८०..। [क्षिसं. ५४] मायदेवी- धर्मात्मा महिला, विजयपार्य एवं श्रीमती की पुत्री, चन्द्रपार्य,
ब्रह्मसूरि एवं पार्श्वनाथ की भगिनी, देवेन्द्र पण्डित की धर्मपत्नी, आदिनाथ, विजयप तथा प्रबचनपरीक्षा के कर्ता पं. नेमिचन्द्र (१६वीं शती ई.) को बननी। [सं. १.१]
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ऐतिहासिक व्यक्तिकोम