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बाधिनयवाद-रा देखेपुर में निर्मापित धिमालय के लिए १.६६.
में महामंडलेश्वर समरस ने मूलसंव-पत्रिकाबाटश शान्ति
नन्दि भट्टारकको भूमिदान दिया था। [थिसं. iv. १४७] मावतवर्मा
१. बेल्लट्टि के मिनालय का निर्माता, मज्जरम्य का पेमरे (नगर प्रशासक), ९९..। [देसाई. ३९१; बेशिसं. iv. ९१] २. कन्नड कषि, रस्नकरण-चम्पू के रचयिता, ल. १४...। [प्रमुख. २६४; ककच; मेज. ३७६] ३. कागिनेल्लि के १.३२ ई. के लि. ले. में उल्लिखित जिना.
लय के लिए स्वर्णदान-दाता मावतवर्मा [शिसं. iv. १२७) मायुवीर्य
ती. ऋषभ के महारानी सुमंगला से उत्पन्न एक पुत्र। आयोज- चित्तारि के तोज का पुत्र, जिसने १.५३ १० की बौर सान्तर
की दान प्रशस्ति उत्कीर्ण की थी। [शिसं. iv. १३७] मारतराम
खिन्दुका गोत्री बोलवाल दिग बैन, नेवटाग्राम के निवासी, १७५७-१७७८ ई. में जयपुर राज्य के दीवान रहे, नेबटा में विशाल जिनमन्दिर बनवाया. जयपुर को अपनी हवेली में भी चैत्यालय बनवाया। इनके कई वंशज भी राज्य के दीवान रहे।
[प्रमुख. ३३९] भारम्बन्दि- शायद दिग. भट्टारक थे, जिन्हें परकेसरिवर्मन विक्रय-योल के
समय, ११३५६. में कुछ भूमि बेची गई थी। [शिसं.iv.
मा
भारिप- कोलक्कुर (मदुरा) के १२वीं शती ई. के शि.ले. में उल्लिखित
दिग. गुरु। [शिसं. iv.३.१] मालगपेक्मान-धर्मात्मा श्रावक, ९वीं शती के तमिल शि. ले. में उल्लिखित ।
[शिसं iv. ६७] या बाईककुमार, पारस्यदेश का राजकुमार, (मरदेशिर ?) श्रेणिक विम्बसार के पुत्र एवं प्रधानमन्त्री अभयकुमार का मित्र, उसके प्रभाव से जैन बना, भारत आया, तो. महावीर के दर्शन किये और दीक्षा कर जैन मुनि बना। [प्रमुख. १८35 टक.] नोमवंशी कायस्थ, विग. विनवमी, पत्नी राधा, पुत्र धर्मशर्माभ्युदय एव जीवंधर चम्पू के कर्ता सुप्रसिडकवि हरिचना, ११वीं शती ई.। [सार. ४६२; टंक]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
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