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आण्डष्ण-
माण्डव्य---
सुप्रभदोहा आदि कतिपय ग्रन्थों को, १७७८ ई० में, प्रतिलिपि हुई थी। [पुजेवासू. १९५ ]
बलगि (कर्णाटक के सिद्धपुर तालुका) के जिनधर्मी राज्यवंश का संस्थापक (ल० १३५० ई०), लगभग एक दर्जन वंशजों ने अनेक जिनमन्दिर बनवाये, दानादि दिये। [ देसाई. १२८ ]
भाषा का अत्यन्त लोकप्रिय जैनकवि, 'कब्बिग र काव' (१२३५ ई०) का रचयिता । [ करूच. i. ३६७-३६८; मेजे. २६६ ) धर्मात्मा श्रावक जिसने कलिंग देशस्थ उदयगिरि पर 'छोटी हाथी गुंफा' बनवाकर दान की थी -ल० प्रथम शती ई. पू [प्रमुख. ५८ ] ( १८३६-९७ ई०), मूलत: प्रवे. स्थानकवासी साधु पे, कुछ समय बाद श्वे. मन्दिरमाग यति बने । १९वीं शती ई० के अन्तिमपाद में महान प्रभावक एवं धर्म प्रचारक जैनाचार्य थे । स्वामि दयानन्द, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द रानाडे, गोखले आदि महापुरुषों के उस युग में जैनधर्म का सफल प्रतिनिधित्व किया, देश एवं विदेशों में धर्मप्रचार की प्रबल भावना थी । शिकागो (अमरीका) के सर्वधर्म सम्मेलन (१८९३ ई०) मे जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए बैरिस्टर वीरचन्द राघवजी गांधी को भेजा, शिकागो प्रश्नोत्तर नामक ग्रन्थ लिखा, अन्य अनेक छोटी बड़ी पुस्तकें लिखीं, यथा जैन तत्वादर्श, तत्त्वप्रसाद निर्णय अज्ञानतिमिर भास्कर आदि। कई ग्रन्थमालाएं, प्रकाशन संस्थाएं उनके नाम से चलीं । वह श्रीमद् विजयानन्दसूरी भी कहलाते थे ।
आत्मशुद्धि
आतमाराम, स्वामि
भवन्न पौण्ड- होललकेरे की शान्तिनाथ-बसदि का जीर्णोद्वार कराने वाले
दानशील जिनभक्त धर्मात्मा श्रावक बोदण्णगोड का पुत्र, सोमण्ण एवं शान्तष्ण का भ्राता, धर्मात्मा श्रावक, अपने पिता एव भाइयों के धार्मिक निर्माणों, धर्मोत्सवों, दानादि में सहयोगी । इनके गुरु मूलसंघी पाश्वंसेन भट्टारक थे । तथोक्त महोत्सव एवं दानादि ११५४ ई० में किये गये थे। [ प्रमुख. १९५; जैशिसं. iii. ३३८; एक. xi, १]
वर्धमानमुनि (१५४२६०) द्वारा 'जगद्वन्ध-सुकुमारचरित्रेश-परवादिविदारक' रूप में प्रशंसित प्रभावक दिगम्बरा श्रायें ।
आवप्पार्थ
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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