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हुआ है। कविवर रामचन्द्र प्रणीत 'श्रीमहावीर जिनपूजा' में सांसारिकमय से मुक्ति पाने के लिए अनुप्रेक्षा का चितवन आवश्यक चित्रित किया है ।
atest शती के कविवर जिनेश्वरदास कृत 'श्री नेमिनाथ जिनपूजा' में बारह भावना का उल्लेख हुआ है ।" कविवर युगल किशोर जैन 'युगल' द्वारा प्रणीत 'श्री देव शास्त्र-गुरु पूजा' में सम्पूर्ण बारह भावनाओं का पृथक्-पृथक् रूप से चित्रण हुआ है ।"
इस प्रकार आत्मा में वैराग्य-भावना उत्पन्न करने के लिए द्वादशअनुप्रेक्षाओं का चितवन आवश्यक है । वैराग्योत्पत्ति काल में बारह भावनाओं का चितवन व्यवहार नय की अपेक्षा निश्चय नय पूर्वक करना मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करता है ।
द्रव्य की दृष्टि से विचार किया जाए तो सारा जगत स्थिर प्रतीत होता है परन्तु पर्याय दृष्टि से कोई भी स्थिर नहीं हैं । विश्व में दो ही शरण हैं । निश्चय से तो निज शुद्धात्मा ही शरण हैं और व्यवहार नय से पंचपरमेष्ठी । पर-मोह के कारण यह जीव अन्य पदार्थों को शरण मानता है । निश्चय से पर-पदार्थों के प्रति मोह राग-द्वेष भाव हो संसार को जन्म देता है । इसलिए जीव चारों गतियों में दुःख भोगता है। आत्मा एक ज्ञान स्वभावी ही है । कर्म के निमित्त को अपेक्षा कथन करने से अनेक विकल्पमय भी उसे कहा
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१. द्वादश भावन भाई महान ।
अध्रुव को आदिक भेद जान ।।
- श्री श्रेयासनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थ-यज्ञ, जवाहरगंज, जबलपुर, चतुर्थ संस्करण सं० १६५०, पृष्ठ ८४ ।
२. लखि पूरव भव अनुप्रेक्ष चिन्त ।
भयभीत भये भवते अत्यन्त ||
- श्री महावीर जिनपूजा, रामचन्द्र नेमीचन्द्र बाकलीवाल, जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, प्रथम संस्करण १९५१, पृष्ठ २१० ।
३. व्याह समय पशुदीन निरखिकें राज तजो दुःख कूप ।
बारह भावना भावे नेमि जी भए दिगम्बर रूप ||
श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैनपूजा पाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ११३ ।
४. श्रीदेव शास्त्र गुरु पूजा, युगल, जैनपूजापाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ३०-३१ ।