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'श्री अजितनाथ जिनपूजा' में प्रभु द्वारा पोष शुक्ला एकादशी को केवल ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है ।" 'श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनपूजा' में कवि ने 'केवल धर्म' संज्ञा में केवल ज्ञान का उल्लेख किया है।' 'श्री महावीर जिन पूषा में कवि ने घातिया कर्म चूर करने के उपरान्त भगवान् द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की चर्चा की है।"
Area शती में कवि कुंजीलाल द्वारा प्रणीत 'श्री महावीर स्वामी पुजा' में चार घातिया कर्म नाश कर वैशाख शुक्ला दशमी को प्रभु ने केवल ज्ञान प्राप्त किया, ऐसा उल्लिखित है । कवि होराचन्द्र कृत 'श्री चतुर्विंशति तीर्थकर समुच्चय पूजा' में प्रभु द्वारा चार घातिया कर्म नष्ट कर केवल ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख हुआ है ।" कविवर सेवक द्वारा प्रणीत 'श्री आदिनाथ
१. पौह सुकल एकादसी, केवल ज्ञान उपाय |
कहो धर्म पद जुग जजे, महाभक्ति उर लाये ॥
- श्री अजितनाथ जी की पूजा, रामचन्द्र नेमीचन्द्र वाकलीवाल जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, राजस्थान, प्रथम संस्करण, सन् १९५१, पृष्ठ २६ ।
२. नौमी वदि वैसाख हो, हने घाति दुखदाय ।
कयौ धर्म केवल भए जजू चरण गुनगाय ||
- श्री मुनि सुव्रत नाथ जिनपूजा, रामचन्द्र, नेमीचन्द्र बाकलीबाल जैन, ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, राजस्थान, प्रथम संस्करण, सन् १६५१, पृष्ठ १७४ ।
३. दसमी सित वैसाख ही, घाति कर्म चक चूर ।
केवल ज्ञान उपाइयों, जजू चरण गुण भूर ॥
- श्री महावीर जिनपूजा, रामचन्द्र नेमीचन्द्र वाकलीवाल जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, राजस्थान, प्रथम संस्करण, सन् १६५१, पृष्ठ २०६ ।
४. वैशाख सुदी दशमी, ध्यानस्थ बखानी ।
चोकर्म नाशि नाथमए, केवल ज्ञानी ॥
- श्री महावीर स्वामी पूजा, कुंजीलाल, नित्य नियम विशेष पूजा संग्रह, दि० जैन उदासीम आश्रम, ईसरी बाजार, हजारी बाग, वीर संवत् २४८७, पृष्ठ ४३ ।
५. घाति चतुष्टय नाश कर, केवल ज्ञान लहाय ।
दोष अठारह टार कर, अर्हत् पद प्रगटाय ॥
- श्री चतुविंशति तीर्थंकर समुच्चय पूजा, हीराचन्द्र, नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, दि० जैन उदासीन आश्रम, ईसरी वाजार, हजारी बाग, वीर सं० २४८७, पृष्ठ ७४ ।