________________
( २० ) भोगनी होती हैं।' सिद्धोपासना से वेदनीय कर्म का नाश हो जाता है।' मोहनीय कर्म उबप से जीव का सम्यवस्व गुण प्रच्छन्न हो जाता है।' सिद्धभगवान की पूजा करने से मोहनीय कर्म नाश हो जाता है। आयुकर्म स्वभावतः जीव को पहुंगति में स्थिर कर देता है। भगवान सिर में आयुकर्म क्षय करने का गण विद्यमान है। नामकर्म के उक्य सेवेतन के नानारूप मुखर हो उठते हैं। गोत्र-कर्म के उत्पन्न होने से जीव को ऊंच-नीच कुल की प्राप्तिहमा करती है। भगवान सिड को शुख-भाव से पूजा करने पर गोत्र१. शहद मिली असिधार, सुख दुःख जीवन को करें ।
कर्म वेदनीय सार, साता-असाता देते हैं । -~~-श्री बृहत सिद्ध चक्र पूजा भाषा, धानत राय, श्री जन पूजा पाठ संग्रह,
६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २३८ ।। २. पुण्य-पाप दोक डार, कर्म वेदनी वृक्ष के। सिद्ध जलावन हार, द्यानत निरबाधा करौ ।
--श्री बृहत् सिद्धचक्रपूजा भाषा, द्यानतराय, वही पृष्ठ २३६ । ३. ज्यों मदिरा के पानते, सुध-बुध सबै भुलाय ।
त्यो मोहनी-कर्म उदे, जीव गहिल हो जाय ।।
-~-श्री वृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, वही पृष्ठ २३६ । ४. अट्ठाईसो मोह की, तुम नाशक भगवान ।
अटल शुद्ध अबगाहना, नमो सिद्ध गुणवान ।।
- श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, धानतराय, वहो पृष्ठ २४० । ५ जैसे नर को पांव, दियो काठ मे पिर रहे।
तसे आयु स्वभाव, जिय को चहुंगति थिति करें ।
--श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, वही पृष्ठ २४० । ६. द्यानत चारों आयु के, तुम नाशक भगवान ।
अटल शुद्ध अवगाहना, नमो सिद्ध गुणखान ॥
-श्रो वृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, वही पृष्ठ २४१ । ७. चित्रकार जमे लिन्ने, नाना चित्र अनूप ।
नाम-कर्म तैसे करे, चेतन के बहु-रूप ।। -~-श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, घानतराय, श्री जैनपूजा पाठ संग्रह,
६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २४१ । ८ ज्यों कुम्हार छोटो बड़ो, भांडो घड़ा जनेय ।
गोत्र-कर्म त्यो जीव को, ऊँच नीच कुल देय ।। - श्री बृहत् सिरचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, बही पृष्ठ २४२ ।