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________________ राग-देष के विजेता को जिन कहते हैं। जिन की वाणी में विश्वास रखने वाला ही जैन कहलाता है। जिनेन्द्र की वाणी को बन परम्परा में मागम कहा गया है । आगम के तत्व-ज्ञान पर आधृत पूजा-काव्य की रचना जैन हिन्दी-पूजा-काव्य का व्यवस्थित रूप हमें अठारहवीं शती से प्राप्त होता है । ऐतिहासिक क्रम से विवेच्य काव्य में प्रयुक्त ज्ञान-राशि का अध्ययनमनुशीलन करना यहाँ मूल अभिप्रेत रहा है। जैन हिन्दी पूजा-काव्य का प्रमुख तथा प्रारम्भिक आलम्बन देव, शास्त्र तथा गुरु रूप रहा है। अस्तु, यहाँ इन्हीं शक्तियों के माध्यम से विवेच्य काध्य में प्रयुक्त मान-सम्पदा का विवेचन करेंगे। विवेच्य काव्य में प्रयुक्त ज्ञान-तत्वों के विषय में अध्ययन करने से पूर्व यह आवश्यक है कि पूज्य, पूजा और पूजक के उद्देश्य विषयक ज्ञान पर संक्षेप में चर्चा हो जानी चाहिए। इष्टदेव, शास्त्र और गुरु का गुण-स्तवन वस्तुतः पूजा कहलाता है। मिथ्यात्व, राग-द्वेष आदि का अभाव कर पूर्ण ज्ञान तथा सुखी होना ही इन्ट है। उसकी प्राप्ति जिसे हो गई वही वस्तुत: इष्ट-देव हो जाता है। अनन्त चतुष्टय के धनी अरहन्त और सिद्ध भगवान ही इष्ट देव है और ये हो परम पूज्य हैं। शास्त्र तो सच्चे देव की वाणी होती है और इसीलिए उसमें मिथ्यात्व राग-द्वेष आदि का अभाव रहता है । वह सच्चे सुख का मार्गदर्शक होने से सर्वथा पूज्य है। नग्न-बिगम्बर मावलिंगी गुरु भी उसी पथ के पथिक, वीतरागी सन्त होने से पूज्य हैं । लौकिक दृष्टि से विद्या-गुरु, माता-पिता आदि भी यथायोग्य आवरणीय एवं सम्माननीय हैं, परन्तु उनके राग-द्वेष आदि का पूर्णतः अभाव न होने से मोक्षमार्ग की महिमा नहीं है, अस्तु उन्हें पूज्य १. "भनेकजन्माटवीप्रापणहेतून् समस्तमोहरागद्वेषादीन् जयतीत जिनः ।" अर्थात् अनेक जन्म रूप अटवी को प्राप्त कराने के हेतुभूत समस्त मोह रागद्वेषादिक को जो जीत लेता है, वह जिन है। -नियमसार, श्री कुन्दकुन्दाचार्य, जीव अधिकार, टीका श्री मगनलाल जैन, श्री सेठी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला बनर्जी स्ट्रीट, बम्बई-३, प्रथम संस्करण सन् १९६०, पृष्ठ ४।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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