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समिति
समवशरण
सत्य .
सर्वतोभद्र स्तुति स्तोत्र
स्थापना
यत्नाचार पूर्वक प्रवृत्ति को समिति कहते हैं, ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण, उत्सर्ग ये पांच भेद समिति के हैं। केवलज्ञान प्राप्त होने पर उपदेश ने की सभा जो देवों द्वारा रचित होती है जिसमें सभी श्रेणियों के प्राणी एकत्र होते हैं। अध्यात्म मार्ग में स्व व पर महिला की प्रधानता होने से आत्म हित-मित वचन को सत्य कहा जाता है। दे. चतुर्मुख, सच्चतुमुख। शब्द्रों द्वारा गुणों का संकीर्तम। स्तुतियों का समूह, पूज्य पुरुषों का गुणानुवाद । बस्तु का ज्ञानकर उसी रूप में स्थापित करना स्थापना है; जल-कलशों के मध्यवर्ती स्थान में रखे सिंहासन पर जिनबिम्ब स्थापित करने की क्रिया, अभिषेक के निमित्त जिन-विम को विराजमान करना । पृथ्वी अप आदि काय के एकेन्द्रिय जीव अपने स्थान पर स्थित रहने के कारण अथवा स्थावर नामकर्म के उदय से स्थावर कहलाते हैं, ये जीव सूक्ष्म व बाहर दोनों प्रकार के होते हुए सर्वलोक में पाये जाते हैं। अनेकांतमयी वस्तु का कथन करने की पति का नाम स्याद्वाद है। आत्म और लोक-कल्याण के लिए चतुविशति तीर्थंकरों का मंगल स्मरण; क्षेमकल्याण/आशीर्वाच/पुण्य आदि का सूचक अव्यय । साधिया। पुष्पांजलि बढ़ाते समय स्वस्ति मंगल पढ़ना, यथा-- 'श्री वृषभो : स्वस्ति स्वस्ति श्री अजितः' आदि । स्वयं बारमा के लिए अध्ययन करना स्वाध्याय है, सद वचनों का अध्ययन इसका लक्ष्य है।
स्थावर
स्याद्वाद
स्वस्ति
स्वस्तिक
स्वस्तिपाठ
स्वाध्याय