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मिसही
जिनके अनुयायी जैन कहलाते हैं । सर्वमित्र, चन्द्रमण्डल, नन्दप, एकत्रण, समासन, शून्यबीज, करुणा, मकर, कृतान्तकृत, "3: :" माने पर स्वाहा या महामाता के अर्थ में प्रयुक्त । निःसही, स्वाध्याय भूमि, निर्वाणभूमि, पाप कियानों के त्याग का संकल्प, साधुओं के रहने का स्थान, दिगम्बरों के मन्दिर में प्रवेश करते समय श्रावक "ॐ जय जय निःसही निःसही" का उच्चार करता है, जिसका परम्परित अर्थ है 'मैं जागतिक परिग्रह को निषित कर/छोरकर इस पवित्र स्थान में प्रवेश करता हूँ', श्वेताम्बरों में इसका प्रयोग तीन प्रस्थानबिन्दुओं पर होता है, पूजा के लिए घर से निकलते समय, मन्दिर में प्रवेश करते समय, पूजा भारम्भ करते समय; इसका एक रूपान्तर णमो मिसीहीए', जिसका अर्थ निर्वाण भूमियों को नमन है, भी प्रचलित है, प्राकृत में इसके रूप है णिसीहीए (निषीधिका); णिसीहिमा (नषेधिकी)-स्वाध्यायभूमि, जहाँ स्वाध्याय के अतिरिक्त शेष प्रवृत्तियों का निषेध है (स्वाध्याय का एक अर्थ पूजा भी है); "निस्सही/निःसही" का लोकप्रचलित अर्थ है : मैं दर्शन पूजा के निमित समस्त पाप/परिग्रह को छोड़कर पा रहा हूं। तस्व का वर्ष वस्तु का स्वभाव है, जीव, अजीब मानब, बन्ध, सबर, निर्जरा, मोम ये सप्त तस्व है। कर्म भय के लिए सपा जाए वह तप है अर्थात् रत्नत्रय का माविर्भाव करने के लिए इष्टानिष्ट इन्द्रिय-विषयों की आकांक्षा के विरोध का नाम रुप है। ब्रम्पपूजा, म्यात्मक पूजा, ऐसी पूजा विसमें अष्टाम्प
तिष्ठ
ठहरें, कमें, रों (सं• स्था)। ती का पर्व है पापों से तरना अपना पापों को दूर करने का स्थान बही तो कहलाता है।