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वाद्य यंत्र
जीवन में सुख दुःख की वृत्तियां अनादिकाल से चली आ रही हैं। इन बुतियों का विकास विभिन्न साधनों पर आधूत है । वाद्ययंत्र इन वृतियों को उद्दीप्त करने में सहायक हुए हैं। वस्तुतः अभिव्यक्ति के प्रस्तुतीकरण में वाद्ययंत्र महत्वपूर्ण बाह्य उपकरण हैं । काव्याभिव्यक्ति में हम आरम्भ से ही वायों की महत्ता से परिचित होते आए हैं। वादय-यंत्रों ने हमारे जीवन साधना और भक्तिपक्ष को सदैव बल प्रदान किया है ।
स्थूल रूप से वाद्य यंत्रों को हम चार भागों में विभक्त कर सकते हैं, यथा
१. ताल वाय
२. तार वाक्य
३. खाल वाय ४. फूंक वाय
जन- हिन्दी-पूजाकाव्य में उपयंकित चारों प्रकार के वाक्य यंत्रों का व्यवहार हुआ है। पूजा-काव्य में प्रयुक्त वायों का अकारादि क्रम से वर्णन करना हमारा मूलाभिप्रेत है ।
करताल
करताल एक ताल बाय है । ताल वाद्य उसे कहते हैं जिसमें ताल देने की क्षमता हो। इसे 'माधा साज' भी कहते हैं । करताल सामूहिक गान के अवसर पर प्रयोग में लाया जाता है। 'खड़ताल' इसी से बना है। यह निरतर एक ही लय की ताल देने वाला वाक्य है । इसका अधिकतर प्रयोग साधु-सन्त प्राय: अधिक करते हैं ।
जैन- हिन्दी- पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कविवर वृंदावन द्वारा 'श्री महावीर स्वामीपूजा' नामक पूजाकृति में यह वाक्य प्रयुक्त है।"
१. करताल विषं करताल घरे ।
सुरताल विशाल जु नाद करें ||
- श्री महावीर स्वामीपूजा, वृंदावन, राजेशनित्य पूजापाठसंग्रह पृष्ठ १३८ ।