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reat शती के पूजाकार मेम विरचित 'श्री अकृत्रिमचत्यालय पूजा" में एवं जिनेश्वर प्रणीत 'श्री नेमिनाथ जिनपूजा" में एवं बोलतराम लिखित 'भी पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा" में इस उपकरण के अभिदर्शन होते हैं।
शिविका - डोली एवं पालको को शिविका कहते हैं। विवेच्य काव्य में उन्नीसवीं शती के पूजा कवयिता वृंदावन मे 'श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा" में, Centerरत्न ने 'श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा" में शिविका का व्यवहार पालकी अर्थ में किया है बीसवीं शती के पूजा कवि दौलतराम ने 'श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा" नामक कृति में शिविका का प्रयोग परम्परा के अनुरूप किया है ।
सिंहासन- सिंह मुखी आसन को सिंहासन कहते हैं। राजा, महाराजा, प्रतिष्ठित एवं पूज्यगण सिंहासन पर आसीन होते हैं। जंग-हिम्बी-पूजा-काव्य मैं उन्नीसवीं शती के कवयिता कमलनयन विरचित 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' में सिहासन का प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है।"
उपङ्कित अध्ययन से स्पष्ट है कि विवेच्य काव्य में विविध वस्त्रों, अनेक आभूषणों, सौन्दर्य-प्रसाधनों तथा नाना उपकरणों का प्रयोग हुआ है ।
जन-पूजा-काव्य में उपास्य देवता का स्वरूप वीतरागमय है अस्तु यहां वस्त्रों के धारण करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। वे तो दिगम्बर हुआ करते हैं। साधु के अन्तर्गत क्षुल्लक-ऐलक कोटि के साधुओं के लिए लंगोटी
१. धरि कनक रकेबी ।
- श्री अकृत्रिम चैत्यालय पूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५१ । २. श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११२ । ३. श्री पावापुर सिद्ध क्षेत्रपूजा, दौलतराम, जंन पूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
१४७ ।
४. श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा, वृंदावन, ज्ञानपीठपूजांजलि, पृष्ठ ३३७ । ५. घरी शिविका निजकंथ मनोग |
--श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३७६। ६. श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम, जैनपूजापाठपूजांजलि पृष्ठ १४६-१
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हरि सिंहासन करि थिति प्रवीन ।
तब माततात अभिषेक कीन ||
- श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित 1