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। २९६ ) भी रत्नत्रयपूणा' और 'श्री सरस्वती पूजा नामक पूना रचनामों में केसर अध्र्य-सामग्री के लिए प्रयुक्त है।
उन्नीसवीं शती के पूजा कवि बदावन ने 'श्री महावीरस्वामी पूजा' नामक पूजाकृति में केशर का व्यवहार शीतलता प्रदान करने के लिए किया है।' बोसवीं शती के पूजाप्रणेता आशाराम और दौलतराम द्वारा पूजाकृतियों में कमशः बाह निकन्दन के लिए एवं तपन के लिए केशर का प्रयोग द्रष्टव्य है।
घनसार-पूजाकाव्य में 'धनसार' का प्रयोग सामग्री सन्दर्भ में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन प्रणीत 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' नामक रचना में हुआ है। बीसवीं शती के कविवर सेवक ने 'श्री अनंतवत पूजा' कृति में धनसार का प्रयोग सुगन्धित द्रव्य के लिए किया है।
बदन-वंदन एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसको लकड़ी प्रगाड गन्धयुक्त होती है। साहित्य में चन्दन का प्रयोग अलंकार, सौन्दर्य प्रसाधन में आलेपन और सिंचन तथा नाम परिगणन के उद्देश्य से हुआ है। विवेच्य काव्य में अठारहवीं
१. श्री रत्नत्रयपूजा, थानत राय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ७० । २. श्री सरस्वती पूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ३८५ । ३. मलयागिरि चंदनसार, केसर संग घसा ।
प्रमुभव आताप निवार पूजत हिय हुलसा ।। -श्री महावीर स्वामी पूजा, वृदावन, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह,
पृष्ठ १३३ । ४. केसर आदि कपूर मिले मलयागिरि चन्दन । परिमल अधिकी सास और सब दाह निकंदन ॥
-श्री सोनागिरिसिद्धक्षेत्रपूजा, आशाराम, जैन पूजापाठ सग्रह, पृष्ठ
१५०1 ५. श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृछ । ६. मलयागिरि चंदन धन कुमकुम अरु धनसार मिलाय ।
-श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयम, हस्तलिखित । ७. चन्दन अगर धनसार आदि, सुगन्ध द्रव्य घसायके ।
-श्री अनतव्रत पूजा, सेवक, जन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २६६