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कोशाम्बी (श्री पद्मप्रभु जिनपूजा)-पकोसाजी से ४ मील दूर कोशाम्बी नगर स्थित है। यहां पर पद्मप्रभु के गर्म-जन्म-तप और ज्ञान नामक वार कल्याणक हुए थे।
संडगिरि-उदयगिरि (भी खण्डगिरिक्षेत्रपूजा)'-भुवनेश्वर से पांच मील पश्चिम की ओर उक्यगिरि और संरगिरि नामक दो पहारियाँ है। उदयगिरि पहाड़ी का प्राचीन नाम 'कुमारी पर्वत' है। यहां से अनेक मुनिजन मोक्ष को प्राप्त हुए हैं अस्तु यह सिद्ध क्षेत्र है। इन पहाड़ियों के मध्य एक तंग घाटी है यहां पत्थर काटकर बहुत सी गुफायें और मन्दिर बनाये गये हैं नहीं चौबीस तीर्य करों को प्रतिमाएं विरामान हैं-ऐसा उल्लेख पूजाकाव्य के जयमाला अंश में प्रष्टग्य है।
गिरिनार (श्री गिरिनार सिद्धक्षेत्र पूजा)-सौराष्ट्र प्रदेश में २१ अक्षांश मोर १०.४१ वेशान्तर पर स्थित 'गिरिनार' महान सिद्धक्षेत्र है । यहाँ बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी के तप, मान और मोक्ष कल्याणक हुये थे। गिरिनार पर्वतराज महापवित्र और परमपूज्य निर्वाणक्षेत्र है। गिरिनार के निकट ही गिरि नगर बसा है जो अधुनातन समय में जूनागढ़ के नाम से जामा जाता है, पूजाकाव्य में यह गढ़ उल्लिखित है।
चंपापुर (श्री चम्पापुरसिद्धक्षेत्र पूजा)-चम्पापुर का अर्वाचीन
१. श्री पद्मप्रभ जिनपूजा, रामचन्द्र, वर्तमानचतुर्विंशति जिनपूजा, नेमीचन्द
वाकलीवाल, जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज (किशनगढ़) राजस्थान, अगस्त
१६५६, पृष्ठ ५७ । २. जैन तीर्थ मोर उनकी यात्रा, डा० कामताप्रसाद जैन, पृष्ठ ३२ । ३. श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, जैनपूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १५८ । ४. जैनतीर्य और उनकी यात्रा, डा. कामताप्रसाद जैन, पृष्ठ ४५-४६ । ५. श्रीखण्डगिरिक्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, जनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ १५६-१५८ । ६. श्री गिरिनार सिद्धक्षेत्रपूजा, रामचन्द्र, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १४१ । ७. जय सितक्षेत्र तीरथ महान, गिरिनारि सुगिरि उन्नत बबान ।
तहं जूनागढ़ है नगर सार, सौराष्ट्र देश के मधि विधार ॥
-श्री गिरिमार सिद्धक्षेत्र पूजा, रामचन्द्र, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १४४ । ८. श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम, बन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १३६ ।