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लस गित से पूर और कृषिमता के सहारे जीवित है। न संपति मनः विवरूप में लोक संस्कृति है जिसमें लोक जीवन सतत मुबारित है। जीवन को गतिविधि माचार-विचार विश्वास -भावनाएं, लोकाचार, अनुष्ठान आदि इस संस्कृति में उसी प्रकार समाए हुए हैं जिस प्रकार घृत दूध की प्रत्येक में संचरित होता है।
जैन-हिन्दी-पूजा-मान्य मूलतः आध्यात्मिक अभिव्यञ्जना प्रधान है तथापि इसके माध्यम से तत्कालीन लोक्षिक तस्वों को भी अभिव्यम्बना हुई है। विष्यकाब्य में प्रयुक्त नगर, वेशभूषा, सौन्दर्य प्रसाधन तथा बामपंच के अतिरिक्त मानवेतर प्रकृतिपरक पुष्पवर्णन, फलवर्णन, पसुवर्णन तथा पक्षी वर्णन उल्लेखनीय है । यहाँ प्रयुक्त इन्हीं वर्णन वैविध्य का संक्षेप में अध्ययन करेंगे।
१. जैन कथाओं का सांस्कृतिक मध्ययन, श्रीचन्द्र जैन, रोशनलाल जैन एण्ड
संस, मैनसुखदास मार्ग, जयपुर-३, प्रथम संस्करण सन् १९७१ ई०,