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गुरु के गुणों का गान किया जाता है ।" कर्म-ईंधन के क्लनार्थ चम्बनावि धूप पदार्थ को अग्नि में क्षेपण किया करते हैं यहां देव-शास्त्रगृह के गुणों का चिन्तन कर कर्मक्षय करने के शुभ संकल्प पूजा-कर्ता द्वारा किया जाता है। कर्म क्षय हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति हुआ करती है। उपास्य के गुणों का गान कर पूजक फल को शुभसंकल्प के साथ क्षेपण करता है।"
इस प्रकार जल, चन्दन, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप तथा फल नामक आठ द्रव्यों को शुभसंकल्प के साथ क्षपण कर पूजा- कर्ता अपने मन में यह भावना माता है कि देवशास्त्र गुरु की पूजा करने से जन्मभर के पातकों
१. जे त्रिजग उद्यम नाश कीने माह तिमिर महाबली । तिहि कर्मघाती ज्ञान दीप प्रकाश जोति प्रभावली ॥ इह भाँति दीप प्रजाल कंचन के सुभाजन में खच् । अरहन्त श्रुत-सिद्धान्त गुरु-निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूं ॥ स्व पर प्रकाशक जोति अति दीपक तमकरि होन । जासो पूजों परम पद देव-शास्त्र-गुरु तीन ||
- श्री देव शास्त्र गुरु पूजा, द्यानतराय, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ १०६
२ जो कर्म - ईधन दहन अग्नि समूह सम उद्धत लसे । वर धूप तासु सुगधिताकरि मकल परिमलता हसे || इह भांति धूप चढाय नित भव-ज्वलन मोहि नही पचू । अरहन्त श्रुत-सिद्धान्त गुरु-निरग्रन्थ नित पूजा रचू ॥ अग्निमांहि परिमल दहन, चन्दनादि गुणलीन । जासों पूजौं परम पद देव शास्त्र गुरु तीन ||
-- श्री देवशास्त्र गुरु पूजी, धानतराय, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ १०६ ।
३. लोचन सुरसना घ्रान उर उत्साह के मीपे न उपमा जाय वरणी सकल फल मोफल चढ़ावत अर्थपूरन परम अमृत रस सच् । अरहंत श्रुत-सिद्धांत गुरू - निरग्रन्थ नित पूजा रचूं ॥ जे प्रधान फल फल विर्ष पंचकरण - रस- लीन । जासों पूजों परम पद देव शास्त्र गुरु तीन ||
करतार हैं । गुणसार हैं |
- श्री देवशास्त्रगुरुपूजा, बानतराय, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ १०६ ।